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________________ (१९७) असंख्यात जीवमय जल, अनंत जीवमय काई आदि और बिना छाना पानी हांवे तो उसमें रहने वाले पूरा आदि त्रमजीव, इनकी विराधना होनेसे स्नान दोषमय है । यह बात प्रसिद्ध है । जल जीवमय है, यह बात लौकिकमें भी कही है । उत्तरमीमांसामें कहा है कि-- ___ लूतास्यतंतुगलिते, ये बिंदौ संति जंतबः । सूक्ष्मा भ्रमरमानास्ते, नैव मांति त्रिविष्टपे ॥ १॥ ___ मकडीके मुखमेंसे निकले हुए तंतुके ऊपरसे छनकर पडे हुवे पानीके एकबिन्दुमें जो सूक्ष्म जीव हैं, वे जो भ्रमरके बराबर हो जाये तो तीनों जगत् में न समावे, इत्यादि । ___अब भावस्नानकी व्याख्या करते हैं:- ध्यानरूप जलसे कमरूप मल दूर करनेसे जीवको जो सदाकाल शुद्धताका कारण होता है उसे भावस्नान कहते हैं। कोई पुरुषको द्रव्यस्नान करने पर भी जो फोडे आदि बहते हों तो उसने अपने पासमे चंदन, केशर, पुष्प प्रमुख सामग्री देकर दूसरे मनुष्य के द्वारा भगवानकी अंगपूजा करवाना; और अग्रपूजा तथा भावपूजा स्वयं करना । शरीर अपवित्र होवे तो पूजाके बदले आशातना होना संभव है, इसलिये स्वयं अंगपूजा करनेका निषेध किया है । कहा है कि निःशूकत्वादशौचोऽपि, देवपूजां तनोति यः । पुष्पैर्भूतिसेयश्व, भवतः श्वपचाविमौ ॥ १॥"
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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