SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१९५) गुण होनेसे यह गृहस्थको शुभकारक है। कहा है कि पूजामें जीव हिंसा होती है, और वह निषिद्ध भी है, तोभी जिनेश्वर भगवानकी पूजा समकितशुद्धिका कारण है, अतएव शुद्धि (निरवद्य) है । अतः यह सिद्ध हुआ कि, देवपूजादि कार्य करना हो तभी गृहस्थको द्रव्यस्नानकी अनुमोदना ( सिद्धान्तमें अनुमति) कही है। इसलिये द्रव्यस्नान पुण्यके निमित्त है, ऐसा जो कोई २ कहते हैं, उस निकाल दिया, ऐसा जानो । तीथमें किये हुए स्नानसे देहकी कुछ शुद्धि होती है, परंतु जीवकी तो एक अंशमात्र भी शुद्धि नहीं होती। स्कन्दपुराणमें काशीखंडके अंदर छटे अध्यायमें कहा है कि मृदो भारसहस्रेण जल कुंभशतेन च । न शुध्यंति दुराचाराः, स्नातास्तीर्थशतैरपि ॥ १ ॥ चित्त शमादिभिः शुद्धं, वदनं सत्यभाषणैः । ब्रह्मचर्यादिभिः काय:, शुद्धो गगां विनाप्यसौ ॥३॥ चित्तं रागादिभिः क्लिष्टमलीकवचनैर्मुखम् । जीवहिंसादिभिः कायो, गंगा तस्य पर ङ्मुखी ॥ ४ । परदारपरद्रव्यपरद्रोहपराङ्मुखः। गंगाप्याह कदाऽऽगत्य, मामयं पावयिष्यति? ॥ ५॥" दुराचारी पुरुष हजारों भार (तोल विशेष ) मट्टीसे, सैकडों घडे पानीसे तथा सैकड़ों तीर्थोंके जलसे नहावे तो भी शुद्ध नहीं होते । जलचर जीव जल ही में उत्पन्न
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy