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________________ (१८४) कालपच्चक्खानका उच्चारण किया जाता है। कालपच्चक्खान यह प्रायः सर्व चौविहार (चतुर्विध आहार त्यागरूप ) होता है। दूसरे स्थानमें विगय, नीवी और आंबिल इनका पाठ आता है । विगयका पच्चक्खान विगयका नियम रखनेवाले और न रखनेवाले इन सबको भी होता है, कारण कि श्रावकमात्रको प्रायः चार अभक्ष्य विगयका त्याग होता ही है । तीसरे स्थानमें एकाशन, वियासना और एकलठानेका पाठ आता है, इसमें दुविहार, तिविहार तथा चौविहार आते हैं । चौथे स्थानमें " पाणस्स लेवेण" इत्यादि अचित्त पानीके छः आगारका पाठ आता है। पांचवें स्थानमें पूर्व ग्रहण किये हुए सचित्त द्रव्य इत्यादि चौदह नियममें संक्षेप करनेरूप देशावकाशिक व्रतोंका प्रातः सायं पाठ आता है । पच्चक्खाणमें तिविहार चौविहारका नियम. उपवास, आंबिल और नीवी ये तीनों पच्चक्खान प्रायः तिविहार अथवा चौविहार होते हैं। परन्तु अपवादसे तो नीवी पोरिसी इत्यादिक पच्चक्खान दुविहार भी होते हैं, कहा है कि: " साहूणं रयणीए, नवकारसहिअं चउन्विहाहारं । भवचरिमं उववासो, अंबिल तिह चउव्विहाहारं ॥ १ ॥ सेसा पञ्चक्खाणा, दुहतिहचउहावि हुंति आहारे । इअ पञ्चक्खाणेसु, आहारविगप्पणा नेआ ॥२॥" साधुओंको रात्रि में और नमस्कार सहित चौविहार ही होता
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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