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________________ ( १८२ ) स्वादिम इन भेदोंसे चार प्रकारका है। तथा इस आहारमें दूसरी जो वस्तुएं पडती हैं, वे भी आहार ही कहलाती हैं । अब एकगिक चतुर्विध आहारकी व्याख्या करते हैं। ओदन ( भात ) एकांगिक अर्थात् शुद्ध अकेला ही क्षुधाका नाश करता है, इसलिये यह अशन आहाररूप प्रथम भेद जानों १) छांछ, जल, मद्यादि वस्तु भी एकांगिक अर्थात् शुद्ध अकेली क्षुधाका नाश करती है, अतएव यह पानआहाररूप दूसरा भेद है (२). फल, मांस इत्यादिक वस्तु एकांगिक अर्थात् शुद्ध अकेली ही क्षुधाका नाश करती है, इसलिये यह खादिम आहाररूप तीसरा भेद है ( ३ ) शहद, फाणित ( अनि पर पका कर गाढा किया हुआ सांठेका रस, राव ) इत्यादि वस्तु एकांगिक अर्थात् शुद्ध अकेली ही क्षुधाका नाश कर सकती है, इसलिये यह स्वादिम आहाररूप चौथा भेद जानो (४). आहारमें जो दूसरी वस्तु पडती है, वह भी आहार कह लाता है, ऐसा जो कहा, उसकी व्याख्या इस प्रकार है:जो लवणादिक एकांगिक वस्तु क्षुधाकी शान्ति करनेको समर्थ न हो, परन्तु चतुर्विध आहारमें काम आती हो, वह वस्तु चाहे आहार में मिश्रित हो अथवा पृथक् हो, तो भी आहार ही में गिनी जाती है । ओदन ( भात) आदि अशनमें लवण, हींग, जीरा इत्यादिक वस्तु आती है, पानी आदि पानमें कपूर आदि बस्तु आती है, आम आदिके फलरूप खादिममें नीमक
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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