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________________ (१७५) अथवा तकिये पर बिछानेके लायक लेना । फूलका नियम किया होवे तो भी भगवानकी पूजा वगैरह में पुष्प कल्प सक्ते हैं । ८ वाहन याने रथ, घोडा, बैल, पालकी आदि समझना। ९ शयन याने खाट आदि । १० विलेपन याने चौपडनेके लिये तैयार किया हुआ चूआ, चंदन, जवासादि, कस्तूरी इत्यादिक वस्तु लेना । विलेपनका नियम लिया हो तो भी भगवानकी पूजा आदि कार्यमें तिलक, हस्तकंकण, धूप आदि करना ग्राह्य है। ११ ब्रह्मचर्य ( चतुर्थव्रत ) याने दिनमें सर्वथा तथा रात्रिमें अपनी स्त्री आदि अपेक्षासे जानों। १२ दिशापरिमाण याने चारों तरफ अथवा अमुक दिशाको इतने गांव तक अथवा इतने योजन तक जाना ऐसी मर्यादा करना । १३ स्नान याने तेल लगाकर अथवा बिना तैल नहाना । १४ भक्त याने पकाया हुआ अन्न तथा सुखडी आदि लेना । इस भक्तके नियममें सब मिलकर तीन चार सेर अथवा इससे अधिक अन्न यथासंभव रखना । खरबूजा आदि लेने से तो बहुत सेर हो जाता है। इन चौदह वस्तुका नियम करना । जिसमें दो, तीन अथवा इससे आधिक सचित्तवस्तुका नाम लेकर अथवा सामान्यतः नियम करनेको जैसे ऊपर कहा है, वैसे द्रव्यादिक चौदा वस्तुका नियम वस्तुका नाम देकर अथवा साधारणतः यथाशक्ति युक्तिपूर्वक करना । उपरोक्त चौदह नियम यह एक नियमकी दिशा बताई है. इसीके अनुसार अन्य भी शाक, फल, धान्य
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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