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________________ (१७३) पान आदि) ६ वस्त्र, ७ फूल (खुशबो) ८ वाहन ९ शयन (खाट आदि) १० विलेपन, ११ ब्रह्मचर्य, १२ दिशापरिमाण, १३ स्नान ( नहाना ), १४ भक्त (खाना)। १ सुश्रावकने मुख्यमार्गसे तो सचित्तका सर्वथा त्याग करना चाहिये, वैसा करने की शक्ति न हो तो नाम लेकर अथवा साधारणतः एक, दो इत्यादि सचित्त वस्तुका नियम करना । कहा है कि सचित्त--दब्ध--विगई--वाणह--तंबोल.-वत्थ--कुसुमेसु । वाहण--सयण--विलेवण--बंभ-दिसि पहाण--भत्तेसु ॥१॥" निरवज्जाहारेणं, निज्जीवेणं परित्तमीसेणं । अत्ताणुसंधणपरा सुमावगा एरिसा हुंति ॥ २ ॥ सच्चित्तनिमित्तेणं मच्छा गच्छंति सत्तमि पुढवि । सञ्चित्तो आहारो, न खमो मणसावि पत्थेउं ॥ ३॥" श्रावक पेस्तर विरवद्याहार लेनेवाले होवें, ऐसा न हो तो अचित्ताहार लेवे, ऐसा भी न हो तो प्रत्येक वनस्पतिका मिश्राहार लेवे और आत्माका श्रेयः करना यही साध्य रक्खे, वे उत्कृष्ट श्रावक गिने जाते हैं. सचित्त आहारके कारण मत्स्य सप्तमनरक चले जाते हैं इससे मनमें भी सचित्त आहारकी इच्छा करनी नहीं चाहिए । २ सचित्त और विगय छोडकर जो कोई शेष वस्तु मुखमें डाली जाती है, वह सर्व द्रव्य है । खिचडी, रोटी, लड्डू, लापशी, पापड.
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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