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________________ (१६३) वाजू जाकर जो इली (जीवविशेष ) आदि कहीं लगी हो तो निकाल कर ठीकरेमें रखना । इस तरह नौ बार प्रतिलेखन करने पर भी जो जीव न नजर आवे तो, वह सत्तु भक्षण करना। और जो जीव दीखे तो पुनः नौबार प्रतिलेखन करना, फिर भी जीव दीखे तो पुनः नौबार प्रतिलेखन करना. इस भांति शुद्ध हो तो भक्षण करना और न हो तो परठ देना, परन्तु जो खाये बिना निर्वाह न होता हो तो, शुद्ध हो तबतक प्रतिलेखन करके शुद्ध होने पर भक्षण करना । निकाली हुई इल्ली घट्टे आदिके पास फोतरेका बहुतसा ढेर हो, वहां लेजाकर यत्नसे रखना । पासमे घट्टा न हो तो ठीकरे आदिके ऊपर थोडा सत्तु बिखेर कर जहां अबाधा न हो ऐसे स्थानमें रखना । पक्वान्न इत्यादिके उद्देश्यसे इस प्रकार कहा है वासामु पनरदिवसं सीउण्हकालेसु मास दिणवीसं । ओगाहिमं जईणं, कप्पइ आरब्भ पढमदिणा ॥१॥ .. घृतपक्वादि पक्वान्न साधु मुनिराजको वर्षाकालमें, किये हुए दिनसे लेकर पन्द्रह दिन तक, शीतकालमें एक मास तक और उष्णकालमें बीस दिन तक लेना ग्राह्य है । कोई २ आचार्य ऐसा कहते हैं कि यह गाथा मूल कौनसे ग्रंथमें है ? सो ज्ञात नहीं होता, इसलिये जबतक वर्ण, गंध, रसादिक न पलटे तब तक घृतपक्वादि वस्तु शुद्ध जानना चाहिये ।
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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