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________________ (१५५) मंदिरमें अंगलूहणा, दीपकके लिये रूई, दीपकके लिये तैल, चंदन, केशर इत्यादिक देना, तथा पौषधशालामें मुंहपत्ति, नवकारवाली, कटासन, चरवला इत्यादिके लिये कुछ वस्त्र, सूत्र, कम्बल, ऊन इत्यादि रखना । वर्षाकालमें श्रावक आदि लोगोंके बैठनेके लिये पाट आदि कराना। प्रतिवर्ष सूत्रादिकसे भी संघकी पूजा करना तथा साधर्मियों का वात्सल्य करना । प्रतिदिन कुछ कायोत्सर्ग करना, तथा तीनसौ गाथाकी सज्झाय इत्यादि करना । नित्य दिनमें नवकारसी आदि तथा रात्रिमें दिवसचरम पच्चखान करना, नित्य दोबार प्रतिक्रमण करना, इत्यादि नियम श्रावकने प्रथम लेना चाहिये। पश्चात् यथाशक्ति बारह व्रत ग्रहण करना। उसमें सातवें (भोगोपभोगपरिमाण) व्रतमें सचित्त, अचित्त व मिश्रवस्तु प्रकट कही है उसे भलीभांति जानना । जैसे-- प्रायः सर्वधान्य, धनिया, जीरा, अजवान, सौंफ, सुवा, राई, खसखस इत्यादि सर्वकण, सर्वफल व पत्र, नमक, खारी, खारा ( नमकविशेष ) सैंधव, संचल आदि अकृत्रिम क्षार, मट्टी, खडिया, गेरू वैसे ही हरे दांतोन आदि व्यवहारसे सचित्त हैं । पानीमें भिगोये हुए चने तथा गेहूं आदि धान्य तथा चने, मूंग आदिकी दाल पानीमें भिगोई हुई हो तो भी किसी जगह अंकुरकी संभावनासे वह मिश्र है। प्रथम लवणादिकका हाथ अथवा वाफ दिये बिना किंवा रेतीमें डाले बिना सेके हुए चने,
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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