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________________ (१३८) अवश्य उपवासका फल पाता है । नंद्यावर्त, शंखावर्त, इत्यादि प्रकारसे हस्त जप करे, तो भी इष्टसिद्धि आदिक बहुतसे फलकी प्राति होती है । कहा है कि " करआवत्ते जो पंचमंगलं साहुपडिमसंखाए । नववारा आवत्तइ छलंति तं नो पिसायाई ॥१॥ जो मनुष्य हस्तजपमें नंद्यावर्त बारह संख्याको नवबार अर्थात् हाथ ऊपर फिरते हुए बारह स्थानोंमे नव फेरा याने एक सो आठ बार नवकार मंत्र जपे, उसको पिशाचादि व्यंतर उपद्रव नहीं करे । बन्धनादि संकट होवे तो नंद्यावर्त्तके बदले उससे विपरीत ( उलटा ) शंखावत से अथवा मंत्रके अक्षर किंवा पदके विपरीत क्रमसे नवकार मंत्रका लक्षादि संख्या तक जप करनेसे भी क्लेशका नाश आदि शीघ्र होता है । ऊपर कहे अनुसार कमलबंध अथवा हस्तजप करनेकी शक्ति न होवे तो, सूत्र, रत्न, रुद्राक्ष इत्यादिककी जपमाला (नोकारवाली) अपने हृदयकी समश्रेणीमें पहिरे हुए वस्त्रको व पांवको स्पर्श न करे, इस प्रकार धारण करना, और मेरूका उल्लंघन न करते जप करना । कहा है कि-- " अंगुल्यग्रेण यज्जप्तं, यज्जप्तं मेरुलंघने । व्यग्रचित्तेन यज्जप्तं, तत्प्रायोऽल्पफलं भवेत् ॥ १ ॥ संकुलाद्विजने भव्यः सशब्दान्मौनवान् शुभः । मौनजान्मानस: श्रेष्ठ, जापः श्लाघ्यः परः परः ॥२ ।।
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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