SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३१ ) गाथा पूर्वार्ध तात्पर्यार्थः - प्रथम श्रावकने निद्राका त्याग करना । पिछली रात्रि में एक प्रहर रात्रि रहने पर उठना । ऐसा करनेमेंइम लोक तथा परलोक संबंधी कार्यका यथावत विचार होनेसे उस कार्यकी सिद्धि तथा अन्य भी अनेक गुण हैं और ऐसा न करने में इस लोक व परलोक सम्बन्धी कार्यकी हानि आदि बहुत दोष हैं। लोकमें भी कहा है कि: "कम्मीणं धण संपडइ, धम्मणं परलोअ || जिहिं सुत्तां रवि उग्गमइ, तिहिं नर आऊ न ओअ " ॥ १ ॥ अर्थः--मजदूर लोग जो जल्दी उठ कर कामसे लगे तो उनको धन मिलता है, धर्मीपुरुष जल्दी उठकर धर्मकार्य करें तो उनको परलोकका श्रेष्ठ फल मिलता है, परन्तु जो सूर्योदय होजाने पर भी नहीं उठते वे बल, बुद्धि, आयुष्य तथा धनको खो देते हैं ॥ १ ॥ . 6 निद्रावश होनेसे अथवा अन्य किसी कारणसे जो पूर्व कहे हुए समय पर न उठ सके तो पन्द्रह मूहूर्त की रात्रिमें जघन्य से चौदहवें ब्राह्ममुहूर्त में (चार घडी रात्रि बाकी रहते ) उठना । उठते ही द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे तथा भावसे उपयोग करना. यथा:-- 4. मैं श्रावक हूं, कि अन्य कोई हूं ?” ऐसा विचार करना वह द्रव्यसे उपयोग: “मैं अपने घर में हूं कि दूसरे के घर ? मेडे पर हूं कि, भूमितले ?” ऐसा विचार करना वह क्षेत्रसे
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy