SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १११ ) तदनंतर शुकराज अपनी दोनों स्त्रियोंको साथ लेकर किसीको भी न कहते देवताकी भांति विमानमें बैठकर विदा हुआ, यह हाल किसीको भी ज्ञात न हुआ । चन्द्रवर्तीका तो चित्त इसी और लगा हुआ था, अतः मालूम होते ही उसने चन्द्रशेखरको खबर दी. वह भी शीघ्र ही वहां आया और आते ही उसका स्वरूप शुकराजके समान होगया, रूपधारी सुग्रीवके भांति उस दांभिकको सब मनुष्य शुकराज ही समझने लगे । रात्रि के समय वह चिल्लाकर उठा तथा कहने लगा कि, "अरे दोडो, दोडो ! यह विद्याधर मेरी दोनो स्त्रियों को हरण कर ले जाता है," यह सुन मंत्री आदि सब लोग हाहाकार करते वहां आये तथा कहने लगे कि, "हे प्रभो! आपकी वे सर्व विद्याएं कहां गई?" चन्द्रशेखरने दुःखी मनुष्यकी भांति मुख मुद्रा करके कहा कि "मैं क्या करूं ? उस दुष्ट विद्याधरने जैसे यम प्राण हरण करता है वैसेही मेरी सर्वविद्याएं भी हरण करली, तब लोगोंने कहा - " हे महाराज ! वे विद्याएं तथा स्त्रियां भलेही चली जावें, आपका शरीर कुशल है इसीसे हम तो संतुष्ट हैं. " इस भांति पूर्णकपटसे सब राजकुलको ठगकर चन्द्रवती पर प्रीति रखता हुआ चन्द्रशेखर राज्य करने लगा । उधर शुकराज विमलाचलतीर्थको वन्दना करके श्वसुरके नगरको गया. तथा कुछ दिन वहां रहकर अपने नगरके उद्यान - में आया । अपने कुकर्म से शंकित चन्द्रशेखर झरोखे में बैठा था
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy