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________________ (९१) दुष्ट कन्याको लेकर भाग गया। इसी दुःखसे मैं रोती हूं." उस स्त्रीके वचन सुन कर शुकराजने उसे धीरज दी और इस को तपस्वीकी एक पर्णकुटी (झोपडी) में रखकर विद्याधरकी खोजमें चला । फिरते २ पिछली रात्रिके समय जिनमंदिरके पीछे जाते उसने भूमि पर पडे हुए एक मनुष्यको तडफडते हुए देखा तथा उसका नाम व दुःखका कारण पूछा। उसने उत्तर दिया कि "गगनवल्लभपुरके राजा सुप्रसिद्ध विद्याधरका मैं पुत्र हूं। मेरा नाम वायुवेग है । राजा शत्रुमर्दनकी पुत्रीको हरण कर मैं इस मार्ग से जा रहा था कि तर्थिके उल्लंघनसे मेरी विद्या भ्रष्ट होगई इससे मैं यहां पड़ा हुआ हूं। सर्वांग पीडित होने पर मैंने पर कन्याको हरणके पातकसे दुर्गतिका अनुमान करके उस कन्याको तथा उसके ऊपरकी आसक्तिको भी छोड दी है। बधिकके हाथसे छुटे हुए पक्षीकी भांति वह कन्या भी मुझे छोडकर कहीं चली गई। धिक्कार है मुझे कि लाभकी इच्छासे मैंने सुखरूप मूल द्रव्य भी खोदिया और असह्य व्यथाको भोगता हूं।" जिस बातकी शोधमें निकला था वही बात मालूम होजानेसे आनंदित होकर खोजते२ शुकराजने मंदिरमें देवी तुल्य उस कन्या को देखी और उसे लेजाकर उक्त धात्रीके पास रखी। बहुतसे उपाय करके विद्याधरको भी आरोग्य किया । जीवनदानके उपकारसे बिके हुए दासकी भांति वह विद्याधर शुकराज पर बहुत प्रीति रखकर उसका सेवक होगया । 'पुण्यका माहात्म्य अद्भुत है।
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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