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________________ * परामर्शान्तरं संशयोत्पादासम्भवः * ६५ अथ भावांशे उत्कटकोटिकसंशय एव संभावना । उत्कटत्वं च निष्कम्पप्रवृत्तिप्रयोजको धर्मविशेषः । तत्प्रयोजकतया च बाधकमाह-'अन्यथे 'ति निश्चयसामग्र्यां सत्यां संशयोत्पादाभ्युपगमे वक्रकोटरादिज्ञानेस्थाणुत्वव्याप्यवक्रकोटरादिप्रकारकविशेषज्ञाने स्थाणुत्वनिश्चयहेतौ सत्यपि स्थाणौ उच्चैस्तरत्वादिप्रकारकसामान्यज्ञानात् संशयहेतोः पुरुषत्वसंशयोत्पादप्रसङ्गादिति प्रसङ्गापादनम् । ननु धूमदर्शनात्पूर्वमपि समानधर्मिकविरुद्धभावाभावप्रकारकसंशयज्ञानरूपा सम्भावनाऽस्त्येव न तु प्रवृत्तिरित्यन्वयव्यभिचार इत्याशङ्कायां चार्वाकः प्राह 'अथ' इति । एवेति एवकारेण एकस्मिन् धर्मिणि तुल्यकोटिकभावाभावप्रकारकसंशयस्य व्यवच्छेदः कृतः । धूमदर्शनप्राक्कालीनस्य च तस्य विध्यंशेऽनुत्कटकोटिकत्वेन सम्भावनऽनात्मकत्वान्न व्यभिचार इति भावः । ननु धूमदर्शनेनाऽनलादौ प्रवृत्तिरनुमानप्रामाण्याऽनभ्युपगमे दुर्घटेत्याहइसका भी अपलाप कर रहे हो। प्रवृत्ति संभावना से हो या अन्य से हो इसके साथ हमारा कुछ विरोध नही है। मगर आप पर्वत आदि में धूम दर्शन के बाद वह्नि की सम्भावना होने की जो बात कर रहे हैं वह ठीक नहीं है, क्योंकि पर्वत में धूम देखने के बाद व्याप्तिस्मरण होने के पश्चात् 'वह्नि से व्याप्त धूम पर्वत पर है' इत्याकारक जो परामर्शज्ञान दर्शक को होता है वह निश्चय का कारण है, संशय का नहीं । निश्चय की सामग्री होने पर अनन्तर समय में संशय की उत्पत्ति नहीं हो सकती है, क्योंकि निश्चय की सामग्री से संशय की सामग्री दुर्बल है। यह एक नियम है कि दुर्बल और बलवान दोनों की सामग्री होने पर बलवान सामग्री से संपाद्य कार्य की ही उत्पत्ति होती है। अतः प्रस्तुत में परामर्शरूप निश्चयसामग्री बलवान होने से निश्चय की ही उत्पत्ति होगी, संभावना की नहीं । यदि निश्चय की सामग्री होने पर भी आप संशय की ही उत्पत्ति मानेंगे तब तो जिस स्थाणु में यानी सूखे पेड पुरुष जितना ऊँचार होने से दूर से 'यह पुरुष है या सूखा पेड ?' ऐसा संदेह पेदा होता है, उसमें 'यह स्थाणु सूखा पेड है' ऐसे निश्चय के जनक ऐसे बखोल, ( वक्र कोटर) शाखा आदि विशेषधर्म का ज्ञान होने पर भी क्या यह पुरुष है या नहीं ? 'ऐसे संदेह की उत्पत्ति होने की आपत्ति आयेगी। मगर हमारा अनुभव ऐसा है कि विशेषधर्म का ज्ञान होने पर निश्चयात्मक ज्ञान ही उत्पन्न होता है, संशय नहीं। अतः परामर्श से, जो कि निश्चयज्ञान का जनक है, निश्चय की उत्पत्ति को मानना संगत है, न कि संशयरूप संभावना की उत्पत्ति । में - * धूम से आग की संभावना की उत्पत्ति के स्वीकार में लाघव नास्तिक नास्तिक :- अथ इति । हम एक ही धर्मी में भाव अंश और अभाव अंश में तुल्यता अवगाही संशय को संभावना नहीं कहते हैं किन्तु संशयविशेष को ही सम्भावना रूप कहते हैं। संशयविशेष का अर्थ है जो संशय भाव अंश में उत्कट कोटिवाला हो वह संशय । अर्थात् "क्या यह धूम है या धूलि ?" ऐसा जो संशय है वह संभावनारूप नहीं है, किन्तु 'यह धूम ही होना चाहिए' ऐसा भाव अंश में = विधि अंश में उत्कटतावाला जो संशय है वही संभावनास्वरूप है। इस तरह पर्वत में धूम को देख कर मनुष्य अग्नि की संभावना से ही यानी 'पर्वत में अग्नि होनी चाहिए ऐसे संशय से ही अग्नि लेने के लिए पर्वत की ओर जाता है। यहाँ भावांश - में उत्कटकोटिक संशय को संभावना कहा है इसमें उत्कटता का अर्थ है निष्कम्प प्रवृत्ति का प्रयोजक धर्मविशेष । पर्वत में 'धूम को देख कर निष्कम्प रूप से = निश्चितरूप से मनुष्य अग्नि को लेने के लिए प्रवृत्त होता है। उस निष्कम्प प्रवृत्ति का प्रयोजक धर्म 'यहाँ अग्नि होनी चाहिए' इस संशय में रहता है। अतः यह संशय संभावनारूप है। यहाँ यह शंका करने की कुछ आवश्यकता नहीं है कि - "संशयरूप संभावना की उत्पत्ति के लिए धूम को देखने कि आवश्यकता क्या है ?, क्योंकि पर्वत में अग्नि का संशय तो धूम को देखे बिना भी हो सकता है" इसका कारण यह है कि अग्निविषयक संशय की उत्पत्ति के लिए धूम को देखने की आवश्यकता है। धूम को देखे बिना पर्वत में जो संशय होता है कि - "पर्वत में आग है या नहीं ?" यह अग्नि लाने की निष्कम्प प्रवृत्ति में प्रयोजक नहीं है। जब कि धूम को पर्वत में देखने के बाद जो संशय होता है कि "पर्वत में अग्नि होनी चाहिए" वही अग्नि लाने की निष्कम्प प्रवृत्ति में प्रयोजक होता है। इस तरह संशय में निष्कम्प प्रवृत्ति के प्रयोजक धर्मविशेषरूप उत्कटता के लिए मानव प्रयास करता है। अतः निष्कम्प प्रवृत्ति के लिए धूमदर्शन के बाद अग्नि की प्रमितिरूप अनुमिति की उत्पत्ति मानने की आवश्यकता नहीं है। जिसकी कोई आवश्यकता न हो फिर भी कल्पना की जाय यह तो निरर्थक कल्पना गौरव ही है। इस गौरव दोष के कारण अनुमितिरूप प्रमा ज्ञान की अदृष्ट कल्पना त्याज्य है।
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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