SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१ * भाषाजघन्यस्थितिमीमांसा * भावतस्तु वर्णवन्त्यपि यावत्स्पर्शवन्त्यपि। वर्णगन्धरससङ्ख्यामाश्रित्य तु समुदायविवक्षायां नियमात्पञ्चद्विपञ्चवर्णगन्धरसवन्त्येव, ग्रहणद्रव्याण्याश्रित्य तु कानिचिदेकद्वयादितद्वन्त्यपीत्यूहनीयम्। कालादीन्यप्येकगुणकालादीनि यावदनन्तगुणकालादीन्यइति वचनान्निसर्गसमये एवादिभाषापरिणामोत्पादेन ये निसृष्टा एकं समयं भाषात्वेनाऽवतिष्ठन्ते तेषां भाषापुद्गलानामादिभाषापरिणामस्थितेरेकसामयिकत्वात्ते एकसमयस्थितिकाः। एवमेकसमयस्थितिकत्वं भाषापुद्गलेषु संभवतीति भावः । इदं च यथाश्रुतं व्याख्यानं कृतम् । प्रज्ञापनाटिप्पणे च "अन्ये त्वभिदधति - एकसमयस्थित्यादिभाषापरिणामापेक्षयोच्यते, यस्मात् किल विचित्राः पुद्गलपरिणामा इति। तान्येवानेकधा परिणाममासादयन्तीति" इत्येवमन्यमतप्रदर्शनं सुस्पष्टं कृतमिति। विवरणे चात्र प्रथमादेशो भाषाद्रव्यस्थित्यपेक्षयोक्तः द्वितीयश्च भाषापरिणामस्थित्यपेक्षया । उभावपि सदादेशौ, भगवदनुमतद्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनयाश्रितमहर्षिवचनानुयायित्वादिति ध्येयम् । 'भावतस्तु' इत्यादि। ननु निषिध्यमानद्रव्यकर्मत्वे सति सत्तासम्बन्धित्वेन शब्दस्य गुणरूपत्वाद् गुणानां च निर्गुणत्वाच्छब्दे वर्णादिविचारो वन्ध्यापुत्रनामोत्कीर्तनतुल्यो भाति मैवम्, शब्दस्य द्रव्यत्वेन 'निषिध्यमानद्रव्यकर्मत्वे सति' इति विशेषणस्यासिद्धत्वात | द्रव्यत्वं च, शब्दे क्रियावत्त्वात प्रसिद्धम् । तस्य निष्क्रियत्वे तु स्वासंबद्धश्रोत्रेण ग्रहणे श्रोत्रस्याप्राप्यकारित्वप्रसङगात। शब्द एकत्वग्राहिणः प्रत्यभिज्ञानस्य 'देवदत्तोच्चरित एवायं शब्दः श्रूयते' इत्येवमाकारेणोपजायमानस्याबाधितत्वेन कदम्बगोलकन्यायेन वीचितरगन्यायेन वाऽन्यशब्दोत्पत्तिकल्पनाऽनुत्थानहता। अथ दूरत्वनैकट्याभ्यां तारमन्दादिभेदेन भेदे ध्रुवे साजात्यमेव प्रत्यभिज्ञाविषय इति चेत्? न, परिणामभेदेऽपि रक्ततादशायां घटस्येव परिणामिनः तस्य सर्वथाऽभेदात्। एतेनाऽबाधितानुभवसिद्धविरुद्धधर्मसंसर्गविषयत्वात्प्रत्यभिज्ञाया बाधितत्वमिति न्यायलीलावतीकारवचनमपहस्तितं द्रष्टव्यम्; विशेषणासिद्धेः। अत एवानुश्रेण्यां विश्रेण्यां वा मिश्राणामेव पराघातवासितानामेव च शब्दद्रव्याणां श्रवणाभ्युपगमेऽपि न क्षतिः के लिए विवरणकार कहते है कि-वर्णादि की संख्या दो विवक्षा से अलग अलग होती है। समुदायविवक्षा से और व्यक्तिअपेक्षा से। समुदाय की विवक्षा से ग्रहण किये जाते भाषास्कंधों में अवश्य रक्त, पीत, नील, श्वेत और कृष्ण ये पांच वर्ण, सुगंध और दुर्गंध ये दो गंध और तीखा, कडुआ, तुरा, खट्ठा और मीठा ये पांच प्रकार के रस रहते हैं। व्यक्तिअपेक्षा से यानी जीव जिन भाषास्कंधो के समूह को ग्रहण करता है उनमें से प्रत्येक स्कंध के प्रत्येक अवयवों में कितने वर्णादि रहते हैं? ऐसा जब प्रश्न किया जाय तब इसका उत्तर यह है कि - 'जीव जिन भाषाद्रव्यों के स्कंधों को ग्रहण करता है, उनमें से कतिपय भाषाद्रव्य एक वर्णवाले भी होते हैं, कतिपय दो वर्णवाले भी होते हैं, यावत् कतिपय भाषास्कंध पाँच वर्णवाले भी होते हैं तथा गंध की दृष्टि से कतिपय भाषाद्रव्य सुरभि गंधवाले होते हैं तो कतिपय दुरभि गंधवाले भी होते हैं और कतिपय दो गंधवाले भी होते हैं तथा रस की अपेक्षा कुछ भाषाद्रव्य एक रसवाले तो कुछ दो रसवाले तो कुछ पाँच रसवाले होते हैं। यह लम्बा-चौडा उत्तर 'ऊहनीयम्' पदप्रयोग से विवरणकार ने दिया है। 'कालादि.' इत्यादि। यहाँ इस शंका का कि - "भाषाद्रव्यों के स्कंध में और उनके अवयवों मे जो श्यामवर्ण, रक्तवर्णादि होते हैं, वे क्या समान मात्रा में होते हैं या उनकी मात्रा में तरतमता होती है? वैसे उनमें सुगंध या दुर्गंध और तीखा आदि रस समान मात्रा में होते हैं या विषममात्रा में होते हैं?" - समाधान यह है कि - "भाषाद्रव्यों के स्कंध और उनके अवयवों में वर्ण-गंध-रस की मात्रा समान ही हो ऐसा कोई नियम नहीं है। किसी भाषाद्रव्य में अन्य भाषाद्रव्य की अपेक्षा एकगुना अधिक काला वर्ण होता है, अन्य किसी भाषाद्रव्य की अपेक्षा दोगुना अधिक कालावर्ण होता है तो अन्य किसी भाषाद्रव्य की अपेक्षा से एकगुना हीन दोगुना हीन, संख्यातगुना हीन, असंख्यातगुना हीन, अनंतगुना न्यून, अनंतभाग हीन, असंख्यभाग हीन, संख्यातभाग हीन काला वर्ण होता है। इस तरह भाषाद्रव्यों के स्कंधो में वर्णादि की मात्रा में षट्स्थान वृद्धि-हानि होती है"। इस विषय की ज्यादा जानकारी के लिए जिज्ञासु प्रज्ञापना आदि ग्रंथो को देख सकते हैं।
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy