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________________ १५ * निक्षेपसमुच्चयनिरूपणम् * ___अत्र = भाषायां निरूपणीयायां, नामादयश्चत्वारो निक्षेपाः चतुरैः = अनुयोगकुशलैः ज्ञातव्याः। नामभाषा, स्थापनाभाषा, द्रव्यभाषा, भावभाषा चेति। तत्र नामस्थापने आगम-नोआगम-ज्ञात्रनुपयुक्त-शरीर-भव्यशरीरद्रव्यभाषानिक्षेपं च सुगमत्वादुपेक्ष्य तद्व्यतिरिक्तद्रव्यभाषाभेदानाह, द्रव्ये च = ज्ञशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्ये च विषये त्रिविधा = त्रिप्रकारा, भाषेत्यस्य पूर्वतो विपरिणतानुषङ्गः । कास्तिस्रो विधा इत्याह, ग्रहणं वचोयोगपरिणतेनात्मना गृहितान्यनिसृष्टानि भाषाद्रव्याणि, तथा चेति समुच्चये। स्वस्वमर्यादायां नामादिभेदैः वस्तुव्यवस्थापको निक्षेप इति प्राञ्चः। तदुक्तं श्रीहर्षवर्धनोपाध्यायेन अध्यात्मबिन्दौ 'निक्षिप्यते = नामादिभेदैर्वस्तु व्यवस्थाप्यते एभिरिति निक्षेपाः। (अ.बि.श्लो. ९३ वृ.) प्रकरणकाराभिप्रायस्तु शक्यतावच्छेदकभेदेनैकस्य शब्दस्यानेकशक्तिप्रदर्शकवचनं निक्षेपः (नयो.श्लो. ८३ वृत्ति) इत्येवं नयोपदेशे वर्तते। नव्यास्तु शक्यतावच्छेदकभेदेनैकस्य शब्दस्यानेकशक्तिप्रदर्शकवचनविषयताव्यापकविषयताकवचनत्वं निक्षेपलक्षणमिति परिष्कुर्वन्ति। सुगमत्वादिति। अनुयोगद्वारादौ विस्तरेण प्रतिपादितत्वेन तज्ज्ञानवतां तात्पर्यज्ञानादिबहुहेतसम्पत्त्यविलम्बेनाचिरकालोत्पत्तिकप्रतिसन्धानविषयत्वादित्यर्थः। __ पूर्वत इति पूर्वगाथातः, पूर्वगाथामाश्रित्येति, पूर्वगाथास्थपदमाश्रित्येति यावत् । विपरिणतानुषङ्ग इति। अन्यथाभूतप्रकृतिः = विपरिणतः, तस्य अनुषङ्गः। एकत्रान्वितस्याऽन्यत्रान्वयोऽनुषङ्गः। पूर्वगाथास्थभाषारहस्यपदमाश्रित्याऽन्यथाभूतप्रकृतिरूपस्य भाषापदस्य प्रकृते विशेष्यविधयाऽन्वयः। उपसर्जनस्यापि बुद्ध्या सन्निकृष्टस्य प्रकरणबलेन विशेष्यविधया परामर्श इति भावः । एवञ्च निराकांक्षप्रतीतिरप्युपपादिता भवति। वचोयोगपरिणतेनेति। ननु श्रीदशवैकालिकनियुक्तिहारिभद्रवृत्तौ "ग्रहणं भाषाद्रव्याणां काययोगेन" (द.वै.अ. ७.नि.श्लो. वृ.) इत्युक्तं विशेषावश्यकभाष्येऽपि 'गिण्हइ काइएणं' (वि.भा.श्लो. ३५५) इत्यादिना तथैव प्रतिपादितम् भवदिभस्त वचोयोगपरिणतेनाऽऽत्मना गृहीतानीत्यक्तमिति कथं न विरोधः? मैवम, वचोयोगपरिणतेनाऽऽत्मनेत्यत्र कर्तरि तृतीया काययोगेनेतिस्थले तु करणे तृतीयेति न कश्चिद्विरोधगन्धोऽपि। तदक्तं श्रीमलधारिहेमसरिभिः विशेषावश्यकवत्तौ 'भाषणाभिप्रायादिसामग्रीपरिणामे सति गृहणाति' (वि.भा.श्लो. वचोयोगापरिणत आत्मा भाषाद्रव्याणि गृहणाति, अन्यथा काययोगस्य सर्वदा सत्त्वेन निरन्तरं तद्ग्रहणप्रसङ्गात् । न चैवमस्ति प्रज्ञापनादिविरोधप्रसङ्गात्। तथा चानेकविधशास्त्रपर्यालोचनेन वचोयोगपरिणत आत्मा काययोगेन यानि स्थापनाभाषा, द्रव्यभाषा और भावभाषा । भाषा के नामनिक्षेप, स्थापनानिक्षेप, आगम से द्रव्यनिक्षेप, नोआगम से ज्ञशरीर द्रव्यनिक्षेप और भव्यशरीर द्रव्यनिक्षेप सुगम होने से विवरणकार ने यहाँ बताए नहीं हैं, लेकिन पाठकों की सुगमता के लिए मैं (हिन्दीविवेचनकार) उनका यहाँ अनुयोगद्वारसूत्रादि के अनुसार संक्षेप में बयान करता हूँ। देखिए, 'भाषा' शब्द - यह भाषा का नामनिक्षेप है, नामभाषा है या किसी चीज की संज्ञा भाषा रखी जाय तब वह भी नामभाषास्वरूप है। तथा लिपिअक्षर भाषा का स्थपनानिक्षेप यानी स्थापनाभाषा है या तो किसी चीज में भाषा की स्थापना करने पर वह चीज स्थापनाभाषास्वरूप होती है। भाषा के द्रव्यनिक्षेप के मुख्य दो भेद है, आगम से द्रव्यभाषा और नोआगम से द्रव्यभाषा । आगम से द्रव्यभाषा का अर्थ है, वह पुरुषादि, जो भाषा के स्वरूप को जानता हुआ भी वर्तमान काल में भाषाविषयक उपयोग से रहित है। यहाँ विवरण में ज्ञातृअनुपयुक्त पद से आगम से द्रव्यभाषा का यह निक्षेप सूचित किया गया है। आगम शब्द का अर्थ है ज्ञान तथा द्रव्यपद का यहाँ अनुपयोग अर्थ अभिप्रेत है। भाषा का ज्ञाता होते हुए भी भाषा में अनुपयुक्त होने से वह पुरुषादि आगम से = आगमतः द्रव्यभाषा कहा जाता है। ___ * नोआगमतः द्रव्यभाषा * नोआगम से द्रव्यभाषा के तीन भेद हैं। १ ज्ञशरीर द्रव्यभाषा, २ भव्यशरीर द्रव्यभाषा, ३ तद्व्यतिरिक्त द्रव्यभाषा। नोआगम शब्द में नो शब्द सर्वथा ज्ञान के अभाव का या देशतः ज्ञान के अभाव का वाचक होता है। यहाँ नो शब्द ज्ञान का सर्वथा निषेध, इस अर्थ में प्रयुक्त है। जिस जीव ने भूतकाल में भाषा के स्वरूप को जाना था, उसकी मौत होने के बाद उसके मृतदेह को नोआगम से ज्ञशरीर द्रव्यभाषा कहा जाता है, क्योंकि वर्तमान में उस मृतदेह में आगम-ज्ञान का सर्वथा अभाव है तथा भूतकाल में वह शरीर
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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