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________________ महोपाध्याय यशोविजयजी महाराजा का उद्गार :- तेभ्यः कृताञ्जलिरयं तेषामेषा च मम विशेषाशीः । ये जिनवचोऽनुरक्ता प्रथ्नन्ति पठन्ति शास्त्राणि ।।१।। - न्यायालोक अर्थ :- जो जिनवचन में अनुरक्त होकर ग्रन्थरचना करते हैं उन्हें मेरा अभिवादन है और जो शास्त्रपठन करते हैं उन्हें मेरा विशेष आशिष है । पत्राइक ............1 = ............ III 8 क्रम -ग्रन्थशरीरपरिचय १........... प्रकाशकीय निवेदन .. २. .........श्रद्धाञ्जलि ......... ..........संशोधकीय वक्तव्य ......... प्रस्तावना ............ .........विषयानुक्रम ............ ......... प्रस्तुतप्रकरण .......................... .......... प्रकरणकारगुरुपरम्पराप्रशस्ति ........... मोक्षरत्नाटीकाकारीय-प्रशस्ति परिशिष्ट १-८ .................. ............ XVII १-३४४ ........... ........... ३४५ ............ ............ ३४८-३६७ A यः पठति लिखति परिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयति । तस्य दिवाकरकिरणैर्नलिनीदलमिव विकास्यते बुद्धिः ।।२।। - न्यायालोक अर्थ :- जैसे सूर्यकिरणों से अरविन्दपत्र विकसित होते हैं ठीक वैसे ही जो पठन, लेखन, निरीक्षण, परिपृच्छा एवं पंडितों की उपासना करता है उसकी बुद्धि विकस्वर होती है । * प्राप्तिस्थान * • द्वितीय आवृत्ति • वि.सं. २०५९ . (१) (२) प्रकाशक वर्धमान आयंबिल भवन, शत्रुजय गेट के सामने, तळेटी रोड, पालिताणा. मूल्य : Rs.१३०-०० . . संशोधक .. न्यायादिरहस्यवित् आचार्यदेव श्रीमद्विजय जगच्चन्द्रसूरिजी महाराजा तथा न्यायमर्मज्ञ पंन्यासप्रवरश्री पृण्यरत्नविजयजी गणीवर एवं पंन्यासप्रवरश्री यशोरत्नविजयजी गणीवर • मुद्रक . श्री पार्थ कोम्प्युटर्स ५८, पटेल सोसायटी, जवाहर चोक, मणिनगर, अमदावाद-३८०००८. फोन : ५४७०५७८ • सर्वाधिकार श्रमणप्रधान श्रीश्वेताम्बरमूर्तिपूजक जैन संघ के स्वाधीन •
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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