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________________ २३४ भाषारहस्यप्रकरणे स्त. ३. गा. ६४ ● उद्देश्यतावच्छेदकावच्छेदेनान्वयविचारः O 'सा उभयमिस्सिया वि य, जीवाजीवाण जत्थ रासिम्मि । किज्जइ फुडो पओगो, ऊणब्भहिआइ संखाए । । ६३ ।। उभयं अत्र जीवाजीवौ, तन्मिश्रिता = उभयमिश्रिताऽपि सा भवति, यत्र = यस्यां जीवाजीवयोः राशौ, ऊनाभ्यधिकायाः संख्यायाः स्फुटः = प्रकटः प्रयोगः क्रियते । यथा मृतेषु जीवत्सु च शंखादिषु 'एतावन्तोऽत्र मृता एतावन्तश्च जीवन्त्येवेति यथोक्तप्रमाणविसंवादे ६ ।। ६३ ।। उक्ता जीवाजीवमिश्रिता । अथाऽनन्तमिश्रितामाह सात मीसिया विय, परित्तपत्ताइजुत्तकंदम्मि। एसो अनंतकाओत्ति' जत्थ सव्वत्थ वि पओगो । । ६४ । । अनन्तमिश्रिताऽपि च सा भवति, यत्र यस्यां परित्तानि यानि पत्रादीनि तद्युक्ते कन्दे = मूलकादौ, सर्वत्राऽपि=सर्वावच्छेदेनाऽपि, 'एषोऽनन्तकाय' इति प्रयोगः । यथोक्तप्रमाणविसंवाद इति । अत्राऽप्युत्पन्नविगतमिश्रिताया इव चतुर्भंगी भावनीया । अत्र मृतेषु जीवत्सु चांशभेदनैव बाधाबाधाभ्यां भ्रमप्रमाजनकत्वेन सत्यासत्यत्वमित्यादि पूर्ववद्भावनीयम् । । ६३ । । उद्देश्यतावच्छेदकावच्छेदेनैव विधेयतावच्छेदकावच्छिन्नस्याऽन्वयो भवतीत्याशयेन शङ्कते - नन्वत्र मृषात्वमेवेति । पत्रादियुक्तकन्दे 'एषोऽनन्तकाय' इति वचने मृषात्वमेव, सर्वावच्छेदेनाऽनन्तकायस्याऽभेदसंसर्गेण बाधितत्वादिति शेषः । विपक्षे बाधमाह - अन्यथेति। उद्देश्यतावच्छेदकावच्छेदेनैव विधेयतावच्छेदकावच्छिन्नान्वयस्याऽस्वीकारे । 'इमौ और जीवंत शंख में विसंवाद होने से यह भाषा भ्रम- प्रमाउभयजनक है। अतएव सत्यामृषाभाषा रूप से कही जाती है। यहाँ अजीवसमूह जीव से मिश्रित होने से इस भाषा को अजीवमिश्रित कहते हैं । । ६२ ।। अजीवमिश्रित भाषा का निरूपण पूर्ण हुआ। अब ६३ वीं गाथा से सत्यामृषा भाषा के छठ्ठे भेदरूप जीवाजीवमिश्रित भाषा को प्रकरणकार बताते हैं । गाथार्थ :- जीव और अजीव के समुदाय में न्यून या अधिक संख्या का जब स्पष्ट रूप से प्रयोग किया जाता है तब वह भाषा जीवाजीवमिश्रितभाषा कही जाती है । ६३ । ६/३ * * जीवाजीवमिश्रित सत्यामृषा भाषा विवरणार्थ :- जिस भाषा में जीव और अजीव के समूह में न्यून या अधिक संख्या का स्पष्टरूप से प्रयोग किया जाता है वह भाषा जीवाजीवमिश्रित होती है, जब प्रदर्शित प्रतिनियत संख्या का विसंवाद हो तब यह बात उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगी । देखिये जीवाजीवमिश्रित भाषा के उदाहरण को । जहाँ अनेक शंख जीवंत और मृत है वहाँ जीवंत और मृत शंखों के समुदाय में 'इस समुदाय में इतने शंख जीवंत है और इतने शंख मृत है "ऐसा निश्चित संख्यावाला विधेयात्मक कथन करना यह जीवाजीवमिश्रित भाषा है जब यथोक्त संख्या का विसंवाद हो । मानो कि अमुक शंखसमूह में ४० शंख जीवंत है और ६० शंख मरे हुए हैं। तब कोई कहता है कि- 'यहाँ ५० शंख जीवंत और ५० शंख मरे हुए है' तो यह भाषा जीवाजीवमिश्रित कही जाती है, क्योंकि जीवंत शंख में ५० संख्या की अंशभूत ४० संख्या का संवाद है और १० संख्या का विसंवाद है वैसे ही ६० मृत शंख के एक देशभूत ५० शंख में ५० संख्या का संवाद है न कि ६० मृत शंखों में। इस तरह जिस अंश में संवाद है उस अंश में प्रमाजनकत्व होने से सत्यत्व है और जिस अंश में विसंवाद है उस अंश में भ्रमजनकत्व होने से असत्यत्व है। अतः इस भाषा का सत्यामृषा के विभाग में समावेश किया गया है। जीव और अजीव दोनों अंश में आंशिक सत्यत्व और आंशिक असत्यत्व होने से इस भाषा को जीवाजीवमिश्रित कहते हैं। अधिक विवेचन पूर्व की तरह यहाँ भी स्वयं ज्ञातव्य है । । ६३ ।। जीवाजीवमिश्रित भाषा का कथन पूर्ण हुआ। अब प्रकरणकार ६४ वीं गाथा से सत्यामृषाभाषा के ७ वें भेदरूप अनंतमिश्रित भाषा का निरूपण करते हैं । १. सोभयमिश्रितापि च जीवाजीवयोर्यत्र राशौ । क्रियते स्फुटः प्रयोगः, ऊनाभ्यधिकायाः संख्यायाः । । ६३ । । १. साऽनन्तमिश्रिताऽपि च परित्तपत्रादियुक्तकन्दे । एषोऽनन्तकाय इति यत्र सर्वत्राऽपि प्रयोगः ||६४।।
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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