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________________ २३० भाषारहस्यप्रकरणे - स्त.३. गा. ६० ० एकतरमिश्रत्वमीमांसा ० २।५९ ।। उक्ता विगतमिश्रिता। अथोत्पन्नविगतमिश्रितामाह 'उप्पन्नविगयमीसिअमेयं पभणंति जत्थ खलु जुगवं। उप्पन्ना विगया वि य, ऊणब्महिया भणिज्जंति।।६०।। एतां = भाषां उत्पन्न - विगतमिश्रितां प्रभणन्ति, श्रुतधरा इति शेषः, यत्र = यस्यां भाषायां, खलु = निश्चये, उत्पन्ना विगता अपि च भाषा, ऊना अधिका युगपद्भण्यन्ते। उदाहरणं चास्मिन् ग्रामे दश जाता दश च मृता इत्यवधारणानुपपत्तौ द्रष्टव्यम् ३।।६०।। उक्तोत्पन्नविगतमिश्रिता। अथ जीवमिश्रितामाह अवधारणानुपपत्ताविति दशाभ्यधिकेषु न्यूनेषु वा जातेषु मृतेषु च तदवघारणबाधात्। अत्र चोत्पन्नाः सङ्ख्यापूरणार्थमनुत्पन्नः विगताश्चाविगतैः साध मिश्रिता युगपद् भण्यन्तेऽत उत्पन्नविगतमिश्रितत्वमभिमतम् । अत्र च जातेषु न्यूनत्वं विगतेषु चान्यूनत्वं, जातेषु न्यूनत्वं विगतेषु चाधिकत्वं, जातेष्वधिकत्वं विगतेषु च न्यूनत्वं जातेष्वधिकत्वं विगतेषु चाधिकत्वमिति चतुर्भङ्गी भावनीया । न च जातेषु न न्यूनाधिकत्वं विगतेषु न्यूनत्वम्, जातेषु न न्यूनाधिकत्वं विगतेषु अधिकत्वं, विगतेषु न न्यूनाधिकत्वं जातेषु न्यूनत्वं, विगतेषु न न्यूनाधिकत्वं जातेष्वधिकत्वमिति शेषभङ्गचतुष्कस्यापि सम्भवादष्टभङ्गी स्यादिति वाच्यम्, एवं सत्युभयमिश्रत्वं न स्यात्किन्त्वेकतरमिश्रत्वम् प्रथमद्वितीययोरेव तदन्तर्भावेन प्रकृतेऽनधिकारादिति दिग्। अत्रापि जातविगतेषु दशसङ्ख्यायाः पञ्चसङ्ख्याद्वयात्मिकाया अंशयोरेव बाधाबाधाभ्यां भ्रमप्रमाजनकत्वेन है। यहाँ वास्तव में दश वृद्ध नहीं मरे हुए हैं, किन्तु दश संख्या से न्यून या अधिक वृद्ध मरे हुए हैं। अतः अन्य न मरे हुए वृद्ध को मीला कर या मरे हुए वृद्धपुरुषों में से अधिक पुरुषों को निकाल कर दशसंख्या ठीक होती है। अतः यह भाषा विगतमिश्रित कही जाती है। यहाँ वृद्धों में जितने मरे हुए हैं, उस अंश में प्रमाजनक होने से और अविनष्ट वृद्ध पुरुषों के अंश में भ्रमजनक होने से इस भाषा को सत्यामृषा कहना युक्तिसंगत ही प्रतीत होता है।।५९।। मिश्र भाषा के विगत मिश्रित भाषारूप द्वितीयभेद का निरूपण पूर्ण हुआ। अब प्रकरणकार ६० वीं गाथा से उत्पन्नविगतमिश्रित भाषा का निरूपण करते हैं। ___ गाथार्थ :- जिस भाषा से वास्तव में उत्पन्न और विगत भाव एक साथ अधिक या न्यून कहे जाते हैं उस भाषा को उत्पन्नविगतमिश्रित कहते हैं।६०। * उत्पन्नविगतमिश्रित भाषा - ३/३ * विवरणार्थ :- गाथा में 'श्रुतधराः' पद अध्याहृत है। अतः यह अर्थ प्राप्त होता है कि - जिस भाषा से वास्तव में उत्पन्न पदार्थ और विनष्ट पदार्थ एक ही साथ न्यून-अधिक कहे जाते हैं इस भाषा को श्रुतधर पुरुषों उत्पन्न विगतमिश्रित भाषा कहते हैं। जैसे कि 'इस गाँव में आज दश ही पैदा हुए और दश ही मर गये' ऐसे वाक्य का अवधारण बाधित होता है तब वह उत्पन्नविगतमिश्रित कहा जाता है। आशय यह है कि जब गाँव में दश से न्यून या अधिक बालकों का जन्म हुआ हो और दश से न्यून या अधिक वृद्धों का मरण हुआ हो तब किया जानेवाला, 'आज यहाँ दश पैदा हुए और दश मरे' यह वचन प्रयोग, उत्पन्नविगतमिश्रित कहा जाता है, क्योंकि गाँव में दस ही पेदा हुए है और मरे हुए हैं-ऐसा नहीं है किन्तु अधिक या न्यून पेदा हुए हैं और मरे हुए हैं। यहाँ उत्पन्न पदार्थ संख्यापूर्ति के लिए अनुत्पन्न पदार्थ से और विगत पदार्थ अविगत पदार्थ से मिश्रित होकर एक साथ ही बताये जाते हैं। अतः इस भाषा को श्रुतधर पुरुषों उत्पन्न विगतमिश्रित भाषा कहते हैं।।६०।।। उत्पन्नविगतमिश्रित भाषा का निरूपण पूर्ण हुआ। अब मिश्रभाषा के चतुर्थ भेद जीवमिश्रित भाषा का, जिसका निरूपण क्रमप्राप्त होने से अवसरोचित है, ६१ वी गाथा से प्रकरणकार विवेचन कर रहे हैं। गाथार्थ :- जीव और अजीव दोनों के समूह में अजीव को छोड कर 'यह अनेक जीवों का समूह है' इत्यादि जो कहा जाता हैं, वह जीवमिश्रितभाषा है।६१। १. उत्पन्नविगतमिश्रितामेतां प्रभणन्ति यत्र खलु युगपत् । उत्पन्ना विगता अपि चोनाभ्यधिका भण्यन्ते।।६०।।
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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