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________________ ● उत्पन्नमिश्रितभाषानिरूपणम् ० २२६ भाषारहस्यप्रकरणे स्त. ३. गा. ५८ उप्पन्नमीसिया सा उप्पन्ना जत्थ मीसिया हुंति । संखाइ पूरणत्थं सद्धिमणुप्पन्नभावेहिं' ।। ५८ ।। सा उत्पन्नमिश्रितेति विधेयनिर्देशः । यत्राऽनुत्पन्नभावैः सार्द्धं संख्यायाः पूरणार्थं उत्पन्ना मिश्रिता भवन्तीत्यनूद्यनिर्देशः । उदाहरणं तु क्वचिदुत्पन्नेषु पञ्चसु दारकेषु दशाऽभ्यधिकेषु वाऽद्य दश दारका जाता इति स्वयमेव दृष्टव्यम् । अत्र च दशसंख्यायाः पञ्चसंख्याद्वयाऽऽत्मिकाया अंशयोरेव बाधाबाधाभ्यां सत्यासत्यत्वं न तु कार्त्स्न्येनाऽन्यतररूपानुप्रवेशः । अत एव 'श्वस्ते शतं दास्यामि' इति कत्वसंवलितभेदप्रतियोगित्वरूपम्। (स्या. क. स्त. ७ श्लो. १३ वृत्ति) तत उद्देश्यतावच्छेदकावच्छेदेन बाधितसंसर्गकविधेयतावच्छेदकावच्छिन्नप्रकारताकशाब्दधीजनकत्वेन तादृशवचनस्य मृषात्वमेव न तु सत्यामृषात्वमित्यादि विभावनाय दिक्पदप्रवेशः कृतः । । ५६-५७ ।। अनूद्यनिर्देशः = उद्देश्यतया निर्देशः । उद्देश्यत्वं च मानांतरप्राप्तत्वे सति विधेयान्वयित्वेन निर्देश्यत्वम् । अन्ये तु विधेयतानिरूपकत्वमुद्देश्यत्वमित्याहुः । उद्देश्यविधेयभावस्थले विधेयतानिरूपकसम्बन्धेन विधेयतावच्छेदकरूपेण विधेयतासमव्याप्तरूपेण वा विधेयस्य व्यापकत्वं तादात्म्येन चोद्देश्यस्य व्याप्यत्वमिति व्युत्पत्तिः । वस्तुतस्तु अत्र यस्योत्पन्नमिश्रितस्य एवाऽधिगमः तं प्रतीतरस्य विधेयत्वं यस्य चेतरस्यैवाऽधिगमस्तं प्रति उत्पन्नमिश्रितस्य विधेयत्वं यस्य चोभयानधिगमस्तं प्रत्युभयस्य विधेयत्वमित्यतिदेशेन स्याद्वादरत्नाकरे व्यवस्थितम् । स्वपरव्यवसायि ज्ञानं प्रमाणमित्यत्र विशेषणविशेष्यान्तरप्रसिद्धौ तदन्यभागस्य विधेयत्वमुभयस्यैव चाप्रसिद्धावुभयस्यैव विधेयत्वमिति तत्रोक्तेरिति ध्येयम् । स्वयमेवेति । न चोदाहरणाप्रदर्शनान्न्यूनत्वमिति वाच्यम् व्युत्पन्नं प्रति तस्यानुपयोगित्वेन सर्वत्र तन्निर्देशस्याऽनावश्यकत्वात् यथा चैतत्तत्वं तथा प्रतिपादितं प्रमाणमीमांसायाम् । कार्त्स्न्येन बाधप्राप्तौ सत्यां बाधाबाधलाभार्थमाह पञ्चसङ्ख्याद्वयात्मिकाया इति । अंशयोरेवेति । एकपञ्चसङ्ख्याया उत्पन्नेष्वबाधेन द्वितीयस्य च बाधेन भ्रमप्रमाजनकत्वात्सत्यासत्यत्वमिति भावः । एवकारव्यवच्छेद्यमाह न तु कार्त्स्न्येनेति। अन्यतररूपानुप्रवेश इति सत्यासत्यान्यतरानुप्रवेश इत्यर्थः । न च पञ्चषूत्पन्नेष्वस्तु सत्यामृषात्वं परं दशाभ्यधिकेषूत्पन्नेषु 'अद्य दश दारका जाता' इत्यस्य सत्यत्वमेव ग्रामस्थेषु दशसु दारकेष्वद्यकालीनोत्पत्तेरबाधादिति वाच्यम् तथापि साक्षाच्छब्दतः प्रतीतस्य यथोक्तसङ्ख्याधिकसङ्ख्याव्यवच्छेदस्य बाधेनांशतो भ्रमजनकत्वात्सत्याहोने से वह वचन असत्य ही है। इस सम्बन्ध में अधिक विचार भी किया जा सकता है। यहाँ जो बताया गया है वह तो एक दिग्दर्शन मात्र ही है। इस बात की सूचना देने के लिए यहाँ दिग्शब्द का प्रयोग विवरणकार ने किया है ।।५६-५७।। अब प्रकरणकार श्रीमद् ५८ वीं गाथा से सत्यामृषा भाषा के प्रथम भेदस्वरूप उत्पन्नमिश्रित भाषा का निरूपण करते हैं। गाथार्थ :- जिस भाषा में उत्पन्नभाव संख्या की पूर्ति के लिए अनुत्पन्नभावों से मिश्रित होते हैं वह उत्पन्नमिश्रित भाषा है ।५८ । * उत्पन्नमिश्रित भाषा - १/३ * विवरणार्थ :- उपदर्शित श्लोकार्थ में 'वह उत्पन्नमिश्रित भाषा है' यह विधेयात्मक निर्देश है तथा 'जिस भाषा में उत्पन्न भाव संख्या की पूर्ति के लिए अनुत्पन्न भावों से मिश्रित होते हैं यह अनूद्यनिर्देश यानी उद्देश्यनिर्देश है। जो अप्रसिद्ध होता है वह विधेय होता है और जो प्रसिद्ध होता है वह उद्देश्य होता है। प्रसिद्ध वस्तु को उद्देश्य बना कर अप्रसिद्ध वस्तु का विधान किया जाता है। प्रस्तुत में उत्पन्नमिश्रित भाषा अज्ञात होने से विधेय है और शेष अंश उद्देश्यस्वरूप है । उत्पन्नमिश्रित भाषा का उदाहरण बताते हुए विवरणकार कहते हैं कि कभी किसी गाँव में पाँच या दश से अधिक बालक का जन्म हुआ हो तब 'आज यहाँ दस बालकों का जन्म हुआ है' ऐसा कहना उत्पन्नमिश्रित भाषा का उदाहरण है, जो स्वयं द्रष्टव्य है। यह वचन उत्पन्नमिश्रित इसलिए कहा जाता है कि दश संख्या दो पाँच संख्या स्वरूप है जिनमें से एक पाँच संख्या का उत्पन्न बालकों में बाध नहीं है, मगर दूसरी पाँच संख्या का उत्पन्न बालकों में बाध है - अभाव है, क्योंकि बालक तो पाँच ही पैदा हुए हैं। अतः एक अंश में प्रमाजनकत्व और अन्य अंश में भ्रमजनकत्व होने से यह भाषा सत्यासत्य कही जाती है। यहाँ भाषा में देश से सत्यत्व और देश से असत्यत्व अभिमत है न कि १. उत्पन्नमिश्रिता सा उत्पन्ना यत्र मिश्रिता भवन्ति । संख्यायाः पूरणार्थं सार्धमनुत्पन्नभावैः । ।५८ । ।
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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