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________________ * प्रतीत्यसत्यायामप्रमात्वशङ्का * मध्यमापेक्षया ह्रस्वा चेत्याद्यप्यूह्यम्। निमित्तान्तरोपदर्शने तु मृषैवेयम् ।। २८ ।। नन्वेकस्यैव कथमणुत्व महत्त्वादिनानापरिणामसमावेशः, विरोधात् । न चैकज्ञानज्ञेयत्वान्न विरोधः तज्ज्ञानाऽप्रमात्वस्यैवाऽऽपाद्यनिमित्तान्तरोपदर्शन इति । सत्त्वाऽसत्त्व - वाच्यत्वाऽवाच्यत्व-नित्यत्वाऽनित्यत्वादिधर्माणां यन्निमित्तं ततो विलक्षणनिमित्तप्रदर्शने=विपरीतनिमित्तप्रदर्शन इति । मृषैवेयमिति । एवकारेण प्रतीत्यसत्यत्वव्यवच्छेदः कृतः । व्यवहारनयाभिप्रायेण चैतद् द्रष्टव्यम्। वादादौ प्रवचनहीलनानिवारणाद्यभिप्रायेण परवादिक्षोभार्थं वा प्रतिवादिनो निमित्तान्तरोपदर्शनेऽपि निश्चयनयाभिप्रायेण सत्यत्वमपि न विरुध्यत इत्याभाति । । २८ ।। १२५ तज्ज्ञानाऽप्रमात्वस्यैवापाद्यत्वादिति अणुत्व - महत्त्वादिनानापरिणामावगाह्येकज्ञानाऽप्रमात्वस्यैवापाद्यत्वादित्यर्थः । आपाद्यत्वं नाम आपादकाभावव्यापकाभावप्रतियोगित्वम् । अत्राऽऽपाद्यापादकभावश्चैवं यदि एकविषयकं ज्ञानं मिथोविरोध्यणुत्व- महत्त्वादिनानापरिणामावगाहि स्यात् तदा तज्ज्ञानमप्रमा स्यात् । प्रतीत्यसत्यभाषाजन्यशाब्दबोधेऽणुत्वमहत्त्वादिनानापरिणामावगाहित्वेनाऽप्रमात्वमापाद्यते । अप्रमाज्ञानजनकत्वेन प्रतीत्यभाषा मृषेत्याशङ्काकर्तुराशयः । तन्निराकरोति 'भिन्न' इत्यादिना । इयं गाथा प्रकरणकारेण स्याद्वादकल्पलतायां सप्तमस्तबके उद्धृता वर्तते । सापेक्ष छोटेपन-बडेपन का विरोध हटा कर एक ही अनामिका अंगुली में छोटेपन - बडेपन रूप विलक्षण प्रतीत्यभावों का वह निराकांक्ष शाब्दबोध कराती है। इस तरह अन्य उदाहरण को स्वयं सोचने की सूचना ग्रंथकार ने 'ऊह्यम्' शब्द के प्रयोग से दी है। * गलत निमित्त बताने पर भाषा मृषा ही होती है * निमित्तान्तर इति। अंत में विवरणकार एक मार्मिक सूचना देते हैं कि जो प्रतीत्यभाव जिस निमित्त की अपेक्षा रखता है, उस निमित्त की अपेक्षा से ही प्रतीत्यभाव की बोधक भाषा प्रतीत्यसत्य कहलाती है। अन्य निमित्त से विलक्षण प्रतीत्यभाव का बोध करानेवाली भाषा सत्य नहीं है, किन्तु मृषा ही है जैसे कि अनामिका मध्यमा की अपेक्षा से दीर्घ है और कनिष्ठा की अपेक्षा से ह्रस्व=छोटी है' यह भाषा दीर्घत्व-ह्रस्वत्वरूप प्रतीत्यभावों के विपरीत निमित्त बताने से मृषा ही है, सत्य नहीं, क्योंकि वास्तव में अनामिका मध्यमा की अपेक्षा छोटी है और कनिष्ठा की अपेक्षा बडी है लंबी है। इससे यह सिद्ध हुआ कि समीचीन निमित्त से प्रतीत्यभाव को बतानेवाली भाषा सत्य है और विपरीत निमित्त से प्रतीत्यभाव को बतानेवाली भाषा मृषा है। ।२८। प्रतीत्यसत्य भाषा के लक्षण और उदाहरण बता कर अब २९वीं गाथा की अवतरणिका करने के लिए विवरणकार शंका बताते हैं। शंका :- नन्चेक. इति । प्रतीत्यसत्य भाषा एक ही धर्मी में अणुत्व- महत्त्व आदि अनेक धर्म का बोध कराती है ऐसा आपका कथन संगत नहीं है, क्योंकि एक ही धर्मी में अणुत्व - महत्त्व आदि अनेक परिणाम का समावेश होने में विरोध है। अणुत्व - महत्त्व आदि धर्म परस्पर विरुद्ध होने से एक धर्मी में वे रह ही नहीं सकते हैं जैसे कि उष्णता और शैत्य में परस्पर विरोध होने से एक ही अग्नि में शैत्य और उष्णता का समावेश नहीं होता है। जैसे अग्नि में उष्णता रहने से शैत्य नहीं रहता है। वैसे ही एक धर्मी में या तो अणुत्व रहेगा या तो महत्त्व रहेगा, दोनों नहीं। 'न चैकज्ञान.' इति । यहाँ यह शंका करना कि - "एक ही अंगुली में ह्रस्वत्व और दीर्घत्व का एक ही ज्ञान में भान हो रहा है तब एक अंगुली में ह्रस्वत्व और दीर्घत्व का विरोध कैसे होगा ?" ठीक नहीं है, क्योंकि हमारा यहाँ आशय यही है कि एक ही धर्मी में अणुत्व- महत्त्व आदि अनेक धर्मो का अवगाहन करनेवाला ज्ञान प्रमा नहीं हो सकता है। हमारा आशय यह नहीं है कि - 'एक वस्तु में अणुत्व- महत्त्व आदि विरुद्ध धर्मों का ज्ञान ही नहीं हो सकता है एक ही वस्तु में परस्परविरुद्ध धर्म का भ्रमात्मक ज्ञान हो सकता है, किन्तु प्रमात्मक ज्ञान नहीं हो सकता है। इतना ही नहीं, हम तो आगे बढ कर यह कहते हैं कि एक ही धर्मी में अणुत्व महत्त्व आदि परस्परविरुद्ध धर्मों का भ्रमात्मकज्ञान उत्पन्न करने से प्रतीत्यभाषा सत्य नहीं है, किन्तु मृषा है। अतः सत्यभाषा के विभाग में प्रतीत्यभाषा का समावेश करना संगत नहीं है। प्रतीत्यभाषा का मृषाभाषा में ही समावेश करना ठीक प्रतीत होता है।
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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