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________________ के हवाले देकर के बराबर खबर ली है। ___ मुण्डक, बृहदारण्यक, तैत्तिरीय, कठ एवं छांदोग्योपनिषद् तथा ऋग्वेद आदि के अनेकान्तवाद के समर्थक पाठों को देकर टीकाकार ने अनेकान्तवाद को विजयी घोषित किया है। ___ गाथा नं. ५० की टीका में हिंसादिषोषक भागवत, विष्णुपुराण आदि ग्रन्थों का उल्लेख टीकाकार की बहुमुखी प्रतिभा का द्योतक है। इस प्रकार यह टीका अपने आप में अगाध ज्ञानसमुद की भाँति सुशोभित है। तपोयमुना टीकाकार की अगाध ज्ञानगरिमा के साथ-साथ तप की विशिष्ट साधना देखकर आश्चर्य होता है। जनमानस में यह भरा हुआ है कि ज्ञान की साधना हेतु विगई आदि का उपभोग आवश्यक है। लेकिन प. पू. वर्धमान तपोनिधि आचार्यदेव श्रीमदविजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म. सा. अपने शिक्षणकाल में न्याय जैसे कठिन अध्ययन के दिनों में छट्ठ (२ उपवास) के पारणे छट्ट करते थे। अतः आचार्य देव, त्यागमूर्ति प. पू. स्व. मोक्षरत्नविजयजी म. सा. तथा प्रस्तुत टीकाकार आदि के उदाहरणों को देखते हुए पूर्वोक्त जनमानस को बदलना आवश्यक है। ___टीकाकार ने ज्ञानगंगा के साथ तपोयमुना भी बराबर बहती रखी है। विहार में भी वर्धमान तप की ओलियाँ करना तो इनके बाँए हाथ का खेल है। २०४६ के चातुर्मास में अप्रमत्ततापूर्वक मृत्युञ्जय (मासक्षमण) की घोर तपश्चर्या करके टीकाकार ने विद्वज्जन को चमत्कृत कर दिया !!! धन्य तपस्वी !!! सृजन सरस्वती सुषुप्त सृजनशक्ति जाग उठी तब टीकाकार ने प्रस्तुत ग्रंथ से सृजन का श्रीगणेश किया। १०५५ श्लोकप्रमाण अल्पकाय भाषारहस्यप्रकरण पर ७००० श्लोकप्रमाण विशालकाय प्रस्तुत टीका... सृजनसरस्वती का प्रवाह अविरत चलता रहा... और मृत्युञ्जय (मासक्षमण) जैसी उग्र तपश्चर्या में कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरीश्वरजी के भगवद्गीतास्वरूप वीतरागस्तोत्र के अष्टमप्रकाश की उपाध्यायजी की स्याद्वादरहस्य जैसी कठिन टीका पर 'जयलताटीका' एवं अनुवाद का शुभारम्भ.... और देखते - देखते सैंकड़ों पृष्ठो का सृजन... सचमुच ज्ञानगंगा तपोयमुना, एवं सृजनसरस्वती का त्रिवेणी संगम है..... धन्य है ऐसी अजोड़ साधना मूर्ति के शिल्पकारों वर्धमान तपोनिधि प. पू. आचार्यदेव श्रीभुवनभानुसूरीश्वरजी म. सा. ... आगम तपोनिधि प. पू. आचार्यदेव श्रीजयघोषसूरीश्वरजी म. सा. ... तार्किकशिरोमणि प. पू. मुनिपुङ्गव श्रीजयसुन्दरविजयजी म. सा. शासनप्रभावक प. पू. मुनिप्रवर श्रीविश्वकल्याणविजयजी म. सा. आदि को कृतज्ञता टीकाकार के अनेक पत्रों से उनकी अकृत्रिम कृतज्ञता के दर्शन हुए। अपने अपूर्व कृतज्ञताभाव को बताते हुए मेरे गुरुदेव के ऊपर एक पत्र में लिखते हुए उन्होंने बताया कि 'नवाङ्गीटीकाकार अभयदेवसूरिजी को संशोधन हेतु चैत्यवासी आचार्य मिले परन्तु मुझे तो आप जैसे सुविहित साधु भगवंत मिले यह मेरा परम सौभाग्य है...' टीकाकार के एक पत्र का कृतज्ञताभरा एक और अंश देकर टीकाकार संबंधी वक्तव्यता को पूर्णविराम देता हूँ... "परमपूज्य परमोपकारी तपोरत विद्वद्वर्य मुनिप्रवर श्री पुण्यरत्नविजयजी म. सा. नी सेवामां यशोविजयनी सादर वंदनावली.... १४. वयणविभत्तिअकुसलो वओगयं बहुविहं अवियाणंतो । जई वि न भासई किंची न चेव वयगुत्तयं पत्तो त्ति ।। (दश. अ. ७ नि. गा. २९०) (vii)
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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