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________________ १५४ श्रीज्ञानविलास. एतेल दुबराजो ||वि० ६ ॥ स्वभाविककिरियानविकि ध॥ किरियातोविभाविकलिन्द्व ॥ नवि ० ॥ चोथो गुंकरेचा लतांसाहाय ॥ जडचेतनने एहिजन्याय॥नवि० ७॥ मींन ज्युंचानेजलमांहे ॥ पणनविचा लेवेलुत्र्त्रहे॥ नवि ०॥ मींन पेरेजडचेतनजाण ॥ जलपेरेधर्मास्तीमांन ॥ भवि० ८ ॥ एगुणचारे स्वनाविकजांण ॥ संखेपेएभाष्यंमांन॥भवि० ॥ हवेकहूपरजायच्यार ॥ पेहेलोखंधस्वरुपउदार ॥ भवि० ९॥ लोकाकाशप्रमाणे जेह ॥ खंध एकभाख्योछेतेह ॥भवि० उरधप्रधोत्रिछादिकजेह ॥ कल्पीतदेशकहावेतेह ॥ न वि०१० ॥ लोकाकाशनाजे परदेश | प्रदेशेप्रदेशेतेहनोप्रदे श ॥ भवि० ॥ प्रदेश केफरसछेसात ॥ श्रापत्रापणिलेोवि जात ॥ भवि ० ११॥ गुरुलघुचोथोपरजाय ॥ विस्तारपं न्नवणारथाय ॥ भवि०॥ हांनिवृद्धिगवेखी जेह ॥ गुरुलघु नाख्येोछेतेह ॥ नवि० १२ ॥ सुमतिग्रंथे भाख्युंतेह ॥ तेह मांहेनविकांइसंदेह ॥ नवि ॥ गुणपरजायएनाख्यासार ॥ मुनि हुकमे को विचार ॥वि०१३॥ ढालत्रिजि संपूर्ण ॥ ॥ दुहा ॥ धर्मद्रव्यएवर्णव्यो | हवे श्रधर्मास्तिकाय॥ श्रा काशकालद्रव्यनो ॥ केहेवामनउछाय ॥ १ ॥ ढालचोथी॥चे तनचेतोरेचेतना एदेशी ॥ धर्मद्रव्यरुपिछे॥ श्रचेतन केहेवायरे ॥ किरियापतेहमांनही॥ गुणत्रण एथायरे ॥ श्र धर्मद्रव्यरुपीछे ॥१॥ चोथो गुणहवे जाणजो । थिरता
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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