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________________ श्रीवास्तुकपुना. कालथी अगरुलघु कह्यो॥ तुमे समजोनाइ ॥ छठाण वडीत्रा ताहां कने ॥ एम चीत्तमे लाइ ॥ नावथकी ते जाणीए ॥ज्ञानादीक गुण ॥ सदगुरु हेते नाखीश्रा॥ ए म वास्तुक सुण ॥ गा०२॥ वास्तुक पुजा तुमे करो॥ | श्री सांतनुं नाम॥ संतपणुं तुमे पांमशो॥ भाख्युं शास्त्र ते तामवास वसो तुमे ते विष॥जे गुणन गेह। अव्या बाध सुख तीहां कन।पामशो तुमे तेह॥३॥ अवेदी अ छेदी सदा॥ अभेदी कहीए॥अखेदी ए आत्मा।एम स मजी लहिए॥असंख्य प्रदेश ते देखता निर्मल ते ना से॥ सीखतणा ए साधरमी॥ अक्षय सुख वासे ॥४॥ सं नावे तीहांकने।नही रागने देशाए नाव चितमे धरोपे हेरो अक्षय वेश। बाहाज्य द्रष्टि मत दियो। दियो अंत रमांही ॥ तव पियो समता सुधा। संतरस ज्यांही॥५॥ सरव जीव ते सारीखा॥ सत्ता ए देखो॥ राग द्वेष की नसे करो|कोण परायो पेखो।ज्ञानादिक गुण अनंतनो॥ स्वामी ते कहीए॥ श्रातम सीड ते सारीखानेद तेहमां ना लहीए ॥६॥ विभाव सर्व दूरे करो॥ दूखदाइ जा पी॥ स्वभावमांही खेलीए॥शुद्ध नाव चीत आपी॥ ज्ञान दरसन चरण तआत्मने कहीए॥ अनेद ज्ञान ते आदरो।केवळतिहां लहिए॥७जथा खाएक जाणीए॥ चारित्र तेह॥ ते गण तिहां प्रगटे॥ अनंत विरज एह॥ -
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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