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________________ - १२२ श्रीसम्यक्हार. परमाधांमि सोलव्यंतर दसतिर्यचनंबक दशजोतषि ते पांचचर पांचथर॥वैमानिकमेबारदेवलोकत्रणकुलविषि या नवलोकांतिक नववेक पांचअनुतरविमान एसर्व मलिनेच्यारनिकायनादेवनानवाणुंनेदथया तेनवाणुंप्र जाप्तानेनवाणुंअप्रजाप्ता सर्वथइनेएकसोनेठाणुंनेदथ याएदेवतातथानारकिनोनावार्थजिवाभिगमथकिजाणवो हवेतीर्यचनापांचनेदजलचर॥१॥ थलचर॥२॥खेच॥३॥ नरपरि॥४॥भुजपरि॥५॥एपांचगर्नजपांचसमर्छिमएदस नाप्रजाप्तानेअप्रजाप्तार्थईनेविसनेदथयाहवेमनूष्यनापां चनतना पांचएवर्तना पांचमहाविदेहनां एनरकर्मनो मिनापनरनेद हवेअकर्मनोमिनात्रिसनेदलिखीएछे पां चहेमंतक्षेत्रना पांचहरीवर्षक्षेत्रना पांचदेवकरुक्षेत्रना पांचउत्तरकरुक्षेत्रना पांचरमणीकवास पांचरणकवास एत्रिसत्रकर्मभोमिनामनुष्य छपनअंतरहिपनामनुष्य प नरकरमनोमि त्रिसप्रकर्मनोमिछपनअंतरद्विपएएकसो नेएकक्षेत्रनाप्रजाप्तानेअप्रजाप्ताएबसेनेबेनेदएकअसंनी याके०॥चउदस्थानकेउपजे एअप्रजाप्ताजमरे एत्रणसेने त्रणनेद बसेनेसाठपूर्वेकह्यातेमळीजीवनीत्रणगतिनाए पांचसेनेत्रेसठ॥५६३॥ सहभेदजीवनामनुष्यनेतीर्यचनो विचारपनवणाथकिविशेषजाणवो इहांतोग्रंथगोरवथाय तेमाटेनाममात्रलिख्याछे एजिवनस्वरुपअजिवनेश्रोल -
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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