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________________ ननु पूर्वरेवोपदेशपदानामुक्तत्वात् किं नवतः पिष्टपेषणप्रायेण तद्नणनेन प्रयोजनमिति ? नच्यते-पूर्वेस्तत्कासनाविनः प्रौढप्रज्ञान् श्रोतॄन् स्वयमेव नावार्थप्रतिपत्तिसहानपेदय नावार्थाविष्करणानादरेण नोपदेशप्रणयनमकारि,-संप्रति तु तुच्छबुछिः श्रोतृलोको न स्वयमेव नावार्थमवबोकुं दमते इति तदनुग्रहधिया नावार्यसारयुतोपदेशपदप्रणयनं प्रस्तुतमिति. चोलकादिदृष्टांतानेवाह-चोखगपासगधएणे-जूए रयण य सुमिणचके य,। चम्मजुमे परमाणू-दस दिलुता मणुयबंने. ५. कदाच कोइ एम पूचशे के उपदेशना पदो तो पूर्व पुरुषोने कहेलाज छे, तो पछी पीसेनान पासवा माफक तमारे ते कहेवानुं शुं प्रयोजन ... एनो जवाब ए छे के, पूर्व पुरुषोए ते काळे रहेला प्रौढ बुद्धिवाला सांजळनाराओ के जेसो पोतानी मेळेज नावार्थ समजी शके तेमना खातर नावार्य वताववा वगर उपदेश करेल डे, पण हमणांना तुच्छ बुद्धि श्रोताजनो पोतानो र जावार्थ समजी शके तेम नथी; तेथी तेमनापर अनुग्रह बुद्धि सावी जावार्थना सारसहित उपदेश पढे! कहेवाने शह कर्या छे. चोलक विगरे दृष्टांतोज कहे छे. चोखक, पाशक, धान्य, धृत, रत्न, स्वप्न, चक्र, चर्म, युग, अने परमाणुओ, ए दश दृष्टांत मनुष्यनव पामवामां अपाय छे. ५ .. . ...... श्री उपदेशपद..
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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