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________________ ॥6॥ तथा सिकः प्रमाणबझोपनब्धात्मतत्त्व उपदेशस्य प्रवचनस्यार्यः जीवाजीवादिरूपोऽनिधेयविशेषो यस्य स तथा-अथवासिघःसकसक्वेश विनिर्मुक्तोजीवविशेषःसएवोपदेशस्याज्ञाया अर्थ प्रयोजनं यस्य स तथा—जगवदाज्ञाया मोबैकफनत्वेन परमर्षिनिः प्रतिपादितत्वा-दतस्तं सिखोपदेशार्थ. अत्र च विशेषणबाहुट्यं अज्ञातज्ञापनफनमेवोक्तं, न पुनर्व्यवच्छेदार्थ,-यथा कृष्णोनमरःशुक्ला बलाका इत्यादीवेति. वदयेऽतिधास्ये-किमित्याह-नपदेशपदानि-इह सकयलोकपुरुषार्थेषु मोक्ष एव प्रधानः पुरुषार्थ इति तस्यैव मतिमतामुपदेष्टुमहत्वेन तदुपदेशानामेव नावत उपदेशत्वमामनंति-तत उपदेशानां मोक्षमार्गविषयाणां शिक्षाविशेषाणां पदानि स्थानानि मनु. ष्यजन्मनत्वादीनि, यहा उपदेशा एव पदानि वचनानि उपदेशपदानि तानि. वळी प्रमाण वळेथी सिद्ध थयो ने जेना उपदेशनो एटले प्रवचननो जीवाजीवादि रूप अर्थ जेनो ते सिX कोपदेशार्थ कहेवार-अथवा सिद्ध एटले सकळक्वेशरहित जीव तेज जेना उपदेश एटले आझानो अर्थ एटले प्र-3 योजन चे ते सिचोपदेशार्य जाणवा. वेमके जगवान्नी आझानुं फळ एकलो मोक्न छे एम परमर्षिोए कहेलु छे. 3 इहां का विशेषणो अजाण्याने जणाववा खातरज डे, नहिके व्यवच्छेद माटे, जेमके काळो चमरो धोळी बानी-इत्यादि माफक. उपदेशना पदो कहीश. त्यां सघळा पुरुषार्थोमां मोहज प्रधान छे तेथी बुद्धिवानोद तनोज उपदेश करवोर योग्य होवायी ते संबंधी उपदेशोनेज चारथी नपदेशप कहे छे, तेथी उपदेशो एटले मोइ.मार्ग संबंधी शिक्षाप्रोना पदो एटसे मनुष्य नव पूर्सन ने इत्यादि पदो, अथवा उपदेशो एज पदो एटल्ले वचनो ते उपदे शपदो जाणवा.. श्री उपदेशपद.
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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