SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना. 10 . धर्म रत्न प्रकरण ग्रंथनी आ त्रीजा भागमां समाप्ति थाय छे. ग्रंथकारे आ महान् ग्रंथमां एवा एवा उपयोगी विषयोनुं ग्रंथन कर्यु छे के जे जैन वर्गनी प्रत्येक व्यक्तिने पठन, पाठन अने मनन करवा योग्य छे. __आ त्रीजा भागमां भावसाधुनुं स्वरुप बताव्युं छे, अने ते प्रसंगे जुदीजुदी कथाओ आपी मूळ विषयने ग्रंथकारे सारो पल्लवित करेलो छ. हमेशां निर्वाणने स.नारा, योगने सेवनारा अने सर्व जीव उपर समदृष्टि राखनारा, शांति विगेरे गुणोथी विभूषित अने सदाचारमा अमाद रहित एवा भावसाधुनां लक्षणो कही, तेनां सात लिंगो दर्शाव्यां छे. मार्गानुसारी क्रिया करवी, धर्म उपर उत्कृष्ट श्रद्धा राखवी, सरलपणाथी प्रज्ञापनीयपणुं धारण कर, क्रियामां प्रमाद न राखवो, जे अनुष्टान पोताथी थइ शके तेनो आरंभ करवो, गुण उपर अनुराग करवो अने गुरुनी आज्ञानुं पूर्ण रीते आराधन करवु-आ सात लिंगो जेनामां होय, ते खरेखरो भावसाधु कहेवाय छे. ते सात लिंग अने तेना भेदो उपरज आ त्रीजा भागनी बधी रचना करवामां आवी छ, अने से उपर प्रसंगे प्रसंगे घणी रसिक दृष्टांतरुप कथाओ आपवामां आवी छे. मार्गानुसारिणी क्रिया ए भावश्रावकपहेलं लिंग दर्शावतां तेनी अंदर भावयतिए केवा. मार्गने अनुसरती क्रिया आचरची जोइए, ए बाबत घणुं सारुं ब्यान करेलुं छे. ते पछी भावसाधुना बीजा लिंग श्रद्धानुं विवेचन करतां विधिसेवा, अतृप्ति, शुद्ध देशना अने स्खलित
SR No.022155
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year1906
Total Pages324
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy