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________________ - अभिप्राय - परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद्विजय रत्नशेखर सूरीश्वरजी द्वारा गुर्जर भाषा में अनुदित 'श्री जैन तत्त्व सार संग्रह' सचमुच एक अद्वितीय पुस्तक है जिसे पढ़कर और वणित विषय पर मनन करके साधारण मनुष्य भी तत्त्व के गूढ़ रहस्यों को समझने में सरलता अनुभव करेंगे। कर्म के विविध पहलूत्रों को आपने अपने अनुभव जन्य विचारों और विशद विवेचन द्वारा सुन्दर ढंग से स्पष्ट किया है। मैंने परम पूज्य आचार्य भगवंत की कुछ अन्य पुस्तकें भी देखी हैं जिनसे मैं अत्यन्त प्रभावित हुया हूँ। प्रस्तुत पुस्तक में आपने आत्मा एवं कर्म के लक्षण, जीव कर्मों से आवृत्त है, जीवों का कर्म ग्रहण, जीव और कर्म का संबंध, पर ब्रह्म का स्वरूप, सुख-दुःख का कारण कर्म आदि गहन विषयो को सामान्य भाषा में विवेचन सहित स्पष्ट किया है जिससे पाठकों की रुचि में कमी हुए बिना वे आगे पढ़ने की ओर आकृष्ट होते रहेंगे । प्रस्तुत पुस्तक में प्रस्तुतिकरण के समस्त गुण विद्यमान हैं। जिससे पुस्तक उपयोगी होने के साथ एक अच्छे साथी का कार्य करेगी। पूज्य आचार्य भगवंत ने अस्वस्थ होने पर भी इस कार्य में जितनी तत्परता एवं कौशल का परिचय दिया है, वह वास्तव में किसी दिव्य शक्ति की सत्प्रेरणा का सुफल ही है । किं बहुना। नैनमल सुराणा 'खुशदिल' एम.ए.,बी.एड., साहित्य रत्न
SR No.022148
Book TitleJain Tattva Sar Sangraha Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherRanjanvijayji Jain Pustakalay
Publication Year1979
Total Pages402
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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