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________________ विगेरे नो विविध दृष्टान्तो बड़े स्पष्टीकरण करी जिज्ञासुनो ने संतुष्टि मले तेवी रीते समझाववा प्रयत्न कर्यो छे. विषय नी गूढ़ता होवा छतां अनेक अकाट्य प्रमाणो द्वारा विषय ना मूल मर्म ने समझावी विषय ने सरलतम बनाववा प्रयत्न कर्यो छे. मूल अने गाथार्थ साथे विशद विवेचन करी सामान्य मानव ने पण पुस्तक मां रस मले तेवो प्रयत्न करवामां आव्यो छे. आशा छे जिज्ञासुमो पुस्तक थी लाभान्वित थशे अने तेमने माटे या पुस्तक उपयोगी नीवड़शे. __ गुर्जर भाषा मां ग्रन्थ नो अनुवाद विशद व्याख्या अने विवेचन साथे करवाथी आ ग्रन्थ वांचवा अने समझवामां पाठको नी रुचि वधशे कारण के सुष्क विषय ने सरस बनाववानो मे पूर्ण प्रयत्न करेल छे. प्रस्तुत ग्रंथ ना सम्पादन मां श्री पार्श्वनाथ जैन छात्रालय मालवाड़ा ना गृहपति श्री नैनमल सुराणाजी ए पूर्ण सहयोग प्राप्यो छे । तेमना उत्साह थी आ कार्य सरल बन्यं अने आजे या वृहद् पुस्तक आपना समक्ष विद्यमान छे. प्रेस नी भूलो रही गई होय अथवा कोई अन्य दोष आपनी दृष्टि मां आवे तो सुधारी वांचवा विनंति छे. महावीर निर्वाण संवत् २५०५ प्राचार्य रत्नशेखर सूरि ।
SR No.022148
Book TitleJain Tattva Sar Sangraha Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherRanjanvijayji Jain Pustakalay
Publication Year1979
Total Pages402
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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