SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३८६) श्रेष्ठ पद्मवल्लभगणिनी सहाय थी आ शुद्ध प्रश्नोत्तर थी अलंकृत एवो ग्रंथः अरिहंत भगवंत ना प्रसाद रूप लक्ष्मी माटे आदर पूर्वक कर्यो छे. विवेचन:- सुगम. अनुवादकस्तस्य प्रशस्तिश्च श्री कलिकाल कल्पतरु मनो वांछित पूरक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवत्परम कृपया अचिन्त्यचिन्तामणि श्री नवपदाराधना मङ्गलमय प्रसंगे श्री महाराष्ट्र देश मध्ये सोलापुर नगरे श्री प्रथम तीर्थपति श्री आदीश्वर भगवत्सानिध्ये प० पू० कच्छवागड़ देशोद्धारक चमत्कारी महापुरुष स्व०. दादा श्रीमद् जितविजयजी महाराजस्य शिष्य रत्न प० पू० प्रशान्तमूत्ति स्व० श्रीमद् बुद्धि विजयजी महाराजस्य गुरु भ्राता प० पू० समयज्ञ गणनायक स्व० पंन्यास प्रवर श्रीमत् तिलकविजयजी गणिवरस्य विनेय श्री रत्नशेखरसूरिणा चंद्रतत्त्वखनयन वैक्रमीय संवत्सरे अश्वयुक् पूणिमायां (शरत् पूर्णिमायां) सोम वासरे कुमार योगे विजयमुहूर्ते श्री जैनतत्त्व सार ग्रन्थस्य गुर्जरानुवादः कृतः।
SR No.022148
Book TitleJain Tattva Sar Sangraha Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherRanjanvijayji Jain Pustakalay
Publication Year1979
Total Pages402
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy