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(२९) तव्यता नो परिपाक स्थिति थई होय तेज आत्मा सम्य क्त्व पामी शके छे. अहियां भवितव्यता नी परिपाक स्थिति मां भवितव्यताज कारण भूत छे.
__संसार मां या जीव दरेक प्रकार नी पौद्गालिक वस्तुप्रो प्रत्ये मिथ्यात्व ना योगे राग-द्वेष करतो आव्यो छे. श्रावो राग-द्वेष आत्मा मां दृढ थतो जाय छे. एवा अत्यन्त दृढ थयेला राग-द्वेष ने ज्ञानी भगवंतो राग-द्वेष नी गांठ तरीके वर्णवे छे. ज्यारे प्रात्मा मां कोई पूर्वे नही ग्रावेल एवो जैन तत्वो प्रत्ये नी रुचि जगाडवामां सहायक अने संसार प्रत्ये नी उदा - सीनता रूप भाव प्रगट थाय छे तेने अपूर्वकरण कहेवाय छे अने अपूर्वकरण द्वारा राग-द्वेप नी गांठ तोड़े छे.
आत्मा मां रहेल मिथ्यात्व नां दलियां जे उदय मां आवे छे तेने खपाववां अने जे उदय मां नथी पाव्यां ते दबाववां तेनु नाम अनिवृत्तिकरण . छेल्ला एक पुद्गल परावर्तन काल मां अाव्या छतां, यथा प्रवृत्ति करण छतां अने भवितव्यता ना परिपाक थवा छतां पण अपूर्वकरण कर्या वगर भवि अात्मा सम्यवत्व पामी शकतो नथी. परन्तु अपूर्वकरण द्वारा राग-द्वेप नी गांठ नो नाश कर्या पछीज भवि अात्मा सम्यक्त्व पामे छे . अपूर्वकरण द्वारा राग-द्वेष नी गांठ नो नाश करवा मां उद्यम एज कारण भूत छे.