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(२५) जीवो नी कर्मों थी मुक्ति मूलम् - कर्मात्मनोरेवमनादि सिद्धों, योगोऽस्त्ययं केवलिनः समूचुः । अस्यापिभेदोविदितस्तथाविधात् सामग्र ययोगात्कनकाश्मनोरिम
गाथार्थ- कर्म अने प्रात्मा नो प्रा योग अनादि सिद्ध छे एम केवल ज्ञानीयो कहे छे . सोनु अने पत्थर नी जेम तेवा प्रकार नी सामग्रीना योगे एनो पण भेद प्रसिद्ध छे . विवेचन- आत्मा अने कर्म नो संयोग बे प्रकारे छे . व्यक्तिगत अने प्रवाह नी अपेक्षाए . व्यक्तिगत रीतिए संसारी प्रात्मा समये – समये आयुष्य छोडी ज्ञानावरणीय,दर्शनावरणीय,वेदनीय, मोहनीय नाम, गोत्र अने अंतराय ए सात कर्मो नो बंध करे छे. एटले समये समये अात्मा साथे कर्मनो बंध थाय छे. परन्तु प्रवाह नी अपेक्षाए अात्मा अने कर्मनो संजोग अनादि काल नो छे .
जो आत्मा अने कर्मनो संयोग अनादि कालनो छे ते संजोग नो वियोग केवी रीते थाय, ए प्रश्न थाय ते स्वाभाविक छे. तेना प्रत्युत्तर मां जणववानु के सोनु अने पत्थर नो संजोग अनादि काल नो छे परन्तु तेवा प्रकार नी सामग्री ना योगे तेनो वियोग