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________________ ( ५ ) बंधना उदये थाय छे. मोहनीय कर्मना नाशथीज ए चारे नाश पामे छे. तीर्थंकर भगवंतो ने मोहनीय कर्म नो नाश थयेल होवाथी ए चारे पण नाश पामी गयेलांज छे. तेथी तीर्थकर भगवंतो ने झूठु बोलवान कोई कारण नथी. एटले तीर्थकर भगवंतो सत्य स्वरूप होवा थी सत्य स्वरुप विशेषण ग्रहण क्युं छे. वांचनार-भणनार वर्ग ने आगम-ग्रथ आदि मां कयो विषय छे ते जाण्या बाद आगमादि वांचवानु-भणवानु मन थाय छे माटे आगमादिना प्रारंभ मांज तेनो विषय बताववो जोइये. तेने अभिधेय कहेवाय छे. तेवीज रीते आ ग्रंथ मां आत्मा ने कर्म सम्बन्धी प्रश्न अने उत्तर आपवामां पावेल छे ते या ग्रंथ नो विषय अभिधेय कहेल छ. जैन शासन मां मति कल्पना ने स्थान नथी परन्तु जिनेश्वर देवोना वचनानुसार जे होय तेनेज अहियां स्थान छे. एटले ग्रन्थादिनो सम्बन्ध बताववो जोइये. अहियां ग्रन्थकार 'किञ्चिद्विचारं समूहे' ए शब्द थी ग्रंथ नो सम्बन्ध बतावे छे. हुं कईक विचारू छु.. कइंक शब्द थी संक्षेपमा जणावू छु अर्थात् बीजे स्थले विस्तार थी पूर्वाचार्योए बतावेल छे, तेमांथी हुँ जणावु छु एटले आ ग्रंथ नो सम्बन्ध पूर्वाचार्योए विस्तारथी रचेला मथो नी साथे छे. तेमज हुं मारी मति कल्पनाथी आ प्रथ
SR No.022148
Book TitleJain Tattva Sar Sangraha Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherRanjanvijayji Jain Pustakalay
Publication Year1979
Total Pages402
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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