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________________ उपदेशतरंगिणी भाषांतर ( कर्ता श्री रत्नमंदिरगणि) श्री नाज्ञेयः स वो देया- दमेयाः परमा रमाः ॥ यन्नामध्यानतः सर्व-सिद्धयः स्युः स्वयंवराः ॥ १ ॥ अर्थ - श्री नानि राजाना पुत्र प्रथम तीर्थकर तमोने माप विनानी उत्कृष्ट लक्ष्मी आपो ? के जे श्री नानि राजाना पुत्रना नामना ध्यानी सर्व सिद्धि पोतानी मेलेज श्रावीने वरे बे. ॥१॥ मना प्रजावना समूहोथी सर्प पण धरणेंद्र थलो बे, ते श्री पार्श्वनाथ प्रभु भक्तिवंतोनी अत्यंत रुचिमाटे थार्ज ? श्री चंद्रमा सरखा सुंदर यशना समूहथी जरेल बे पृथ्वीनं तल जेर्जए तथा मोक्षरूपी लक्ष्मीना मुकुट सरखा एवा श्री वर्धमान प्रभुने हुं नमस्कार करूं बुं. ( या श्लोकमां कविए पोताना गुरु श्री सोमसुंदर महाराज तथा श्री रत्नशेखर महाजने पण गर्जित नमस्कार कर्यो बे. ) जेनी कृपाथी जड माणस पण वृद्धवादीनी पेठे जगतमां पूजनीक थाय बे, ते सरस्वती देवी सनोने आनंद पो ? अमृतसरखी देशनाना रसथी मनोहर थपली, तथा मुनिराजोने पण माननीक एवी श्रा उपदेशतरंगिणी घणा कालसुधी जय पामो ? श्रीनंदिरत्नना शिष्य एवा श्री रत्नमंदिरगणी साधु हवे उपदेशरूपी मध्थी प्राणी ने खुशी करे बे.
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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