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________________ उपदेशतरंगिणी. ६ए तेनेज घेर रही षट्रस जोजन करतां थकां तेमणे शील पाड्यु ने; इत्यादिक वृत्तांत ते ग्रंथमां बे. ते सांजली क्रोध पामेला देवबोधि आदिक ब्राह्मणो बोली उठ्या के, विश्वामित्रपराशरमन्नृतयो ये शुष्कपत्राशिनस्तेऽपि स्त्रीमुखपंकजं सुललितं दृष्ट्वैव मोहं गताः ॥ आहारं सघृतं पयोदधियुतं नुजति ये मानवास्तेषामिज्यिनिग्रहः कथमहो दंनः समालोक्यतामा अर्थ- विश्वामित्र पारासर आदिक शषिट के जेउ सूकां पांदडां श्रादिक खानाराउ हता ते पण मनोहर एवां स्त्रीना मुखरूपी कमलने जोश्नेज मोह पामेला ; तो जे माणसो हमेशा घृत, दही, दूध आदिकवालांनोजनो जमे , तेउने इंजियदमन ते क्यांथी होय ? माटे अहो आमनुं कपटीपणुं तो जुट ? ॥ ते सांजली हेमचंज श्राचार्यजीए कह्यु के, सिंहो बलिहिरदशूकरमांसन्नोजी, ___ संवत्सरेण रतिमेति किलैकवारम् ॥ - पारापतः खरशिलाकणनोजनोऽपि, __ कामी नवत्यनुदिनं वद कोऽत्र हेतुः॥१॥ अर्थ- बलवान एवा हाथीओना तथा शुकरना मांसने खानारो सिंह तो वर्षमां फक्त एकज वार कामविकारी श्राय डे, अने पारेवु ( कबुतर ) तो वेलु खाय ने उतां पण हमेशां कामी थाय ने माटे हे ब्राह्मणो! तमो कहो के तेनो हेतु शुंजे? ॥१॥ . एवी रीते श्राचार्यजीए सत्य उत्तर आप्याथी राजा खुशी थया. वली तेज शीलना माहात्म्यनी प्रशंसा करे . . . .
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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