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________________ उपदेशतरंगिणी. . एवी रीतनी पोतानी स्तुति सांजलीने वस्तुपास मंत्री लजाथी नीचुं नोवा लाग्या; ते जोइ नाना नामना कविए कह्यु के, एकस्वं नुवनोपकारकशति श्रुत्या सतां जटिपतं लगानम्रशिरा धरातलमिदं यहीसे वेनि तत् ॥ वाग्देवीवदनारविंदतिलकत्रीवस्तुपाल ध्रुवं पातालालिमुद्दिधीर्घरसकृन्मार्ग नवान मार्गसि॥१॥ अर्थ- " तुं एकज जगतनो उपकारी डे" एवी सऊनोनी वाणी सांजलीने लजाथी मस्तक नमावीने जे तमो नीचे जुड़े बगे तेनुं कारण हुँ जाणुं वं; हे सरस्वतीना मुखपर तिलकसमान एवा वस्तुपाल मंत्री ! खरेखर तमो पातालमांथी बलिराजाने खेंची कहाडवानी श्वाथी मार्गने शोधो जो. ॥१॥ ते सांजली मंत्रीश्वरे ते कविराजने सुवर्णनी जीन पी. एक दहाडो सोमेश्वर कत्रि वस्तुपालने घेर आव्यो, त्यारे मेंत्रीश्वरे तेमने बेसवामाटे उत्तम आसन आप्युं, पण तेपर ते बेगे नहीं; त्यारे मंत्रीश्वरे तेनुं कारण पूज्यु; त्यारे कविए कह्यु के, अन्नदानैः पयः पान-धर्मस्थानैश्च नूतलम् ॥ यशसा वस्तुपालेन, रुधमाकाशमंडलम् ॥१॥ अर्थ- वस्तुपाल मंत्रीश्वरे अन्नदानथी, जलदानथी, तथा धमनां मकानोथी पृथ्वीतलने रोक्युं , तेम यशथी आकाशममलने रोक्यु , ( माटे जगो नहीं मलवाथी हुँ बेसतो नथी.) ते सांजली मंत्रीश्वरे तेने नव हजार सोनामोहोरो आपी. एक दहाडो वस्तुपाल मंत्री संघपूजा करता हता त्यारे वि. जयसेनसूरिजीए कह्यु के, आजे तो इंजना नंदनवनना उद्यानपालके इंनी सनामां जश् एवो पोकार कर्यों के,
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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