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________________ उपदेशतरंगिणी. .. ए अर्थः- शुं श्रा महादेव ने ? के विष्णु ने ? के इंज? के नल ने ? के कुबेर ने ? के को विद्याधर ? के कामदेव ने? के चंज ? के ब्रह्मा ने ? त्यारे ते मोशीए कह्यु के, अरे मुग्धे सखि! तेमांथी ते कोइ पण नथी;आ तोलोजराजा पोते क्रीमा करवाने जाय . ते सांजली नोजराजाए कडं के, हे कवीश्वर! मने विष्णु आदिकनी उपमा शीरीते घटी शके ? त्यारे धनपाल कवीश्वरे कडं के, हे राजन् ! सांजलो. अभ्युता वसुमती दलितं रिपूरः क्रोडीकृता बलवता बलिराजलदमीः॥ एकत्र जन्मनि कृतं तदनेन यूना, जन्मत्रये यदकरोत्पुरुषः पुराणः ॥१॥ अर्थ-वलवान एवा तमोए एकज जन्ममा पृथ्वीने उधरी ने, शत्रुटने दट्या ,तथा (बलिराजनी) बलवान राजाउनी लक्ष्मीने वश करीने अने विष्णुए तो त्रण जन्ममां ते त्रणे कार्यो कर्या ने. ते सांजली तुष्टमान श्रएला नोज राजाए कवीश्वरने कयुं के, हे कविराज ! तमो कं; पण वरदान मागो ? त्यारे धनपाले कह्यु के, जो एम ने तो मने ( मारी ) आंखो आपो ? त्यारे राजाए कडं के, ते आंखो तो प्रथमश्रीज तमारीपासे बे. त्यारे कवीश्वरे कडं के ते आंखो बे, पण नहीं होवासरखी हती, केमके, आपे मनश्री ते ले लेवानीज श्वा करी हती. त्यारे राजाए कह्यु के, तमोए ते शी रीते जाण्युं? त्यारे कविराजे कह्यु के, आकारैरिंगितर्गत्या, चेष्टया नाषणेन च ॥ नेत्रवऋविकारैश्च, लक्ष्यतेऽतर्गतं मनः ॥१॥ आकार, इंगित, गति, चेष्टा, वचन, अने नेत्र तथा मुखना विकारथी प्राणीउनुं अंतरंग मन जणाय वे. ॥१॥
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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