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________________ १४ उपदेशतरंगिणी. अर्थ- जिनमंदिर, पौषधशाला, जिनागमोनुं लखाववं, साधु तथा साधर्मीकोनी नक्ति इत्यादिक शुन्न कार्यों करवायी प्राणी अपनवी थाय बे. जिनमंदिरादिक साते क्षेत्रोमां नक्ति करनारो माणस महा श्रावक कहेवाय बे. कडं ने के, नरेषु धरणीपतिस्तरुषु दिव्यकारस्करः ___ करिष्वमरसिंधुरः फणधरेषु शेषः पुनः॥ सुपर्वसु पुरंदरो गिरिषु रत्नसानुर्यथा . तथा सुकृतवत्स्वसौ महाश्रावकः कथ्यते ॥१॥ अर्थ- माणसोमा जेम राजा, वृदोमा जेम कट्पवृक्ष, हाथीउमां जेम ऐरावण, नागोमां जम शेषनाग, देवोमा जेम इंज तथा पर्वतोमा जेम मेरु तेम पुण्यशालीउमां (साते देत्रोनी नक्ति करनारो माणस ) महाश्रावक कहेवाय बे. श्री हेमचंत्राचार्ये पण कुमारपाल पासे नीचे प्रमाणे महा श्रावकनुं लक्षण कडं . एवं व्रतस्थितो नकया, सप्तदेव्यां धनं वपन् । दयावानतिदीनेषु, महाश्रावक उच्यते ॥१॥ अर्थ- एवी रीते व्रतमा रहेलो, तथा नक्तिथी साते क्षेत्रोमां धनने वापरनारो, अने अति दीन प्राणी प्रते दयालु एवो माएस महाश्रावक कहेवाय .. इति श्री तपागच नायक श्री सोमसुंदरसूरि, श्रीरत्नशेखरसूरि पं० नंदिरत्नगणि शिष्यरत्नमंदिरगणि गुंफितायां श्री उपदेशतरंगिण्यां श्री जिननवनादि सप्तत्रिवित्त वितरण विवेक प्रकाशकश्चत्वारिंशउपदेशमनोहरो वितीयस्तरंगः समाप्तः श्रीरस्तु ॥
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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