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________________ उपदेशतरंगिणी. खारु जणायाधी त्यां जिनप्रासाद करवानी पेथडशाहने तेणे बुट श्रापी. पठी अनुक्रमे केटलेक काले सुवर्णकलश तथा ध्वज सहित ते जिनप्रासाद विक्रम संवत १३३५ मां संपूर्ण आयु. तेना चाकरो ज्यारे तेनां खरचनुं नामुं मांमवा बेग, त्यारे फक्त तेमां खपेला दोरडांउनीज किम्मत चोर्यासी हजार रुपीथानी थक्ष एवं विचारि तेए नामुं मांगq तजी दीधुं. पठी ते प्रासादनुं “अमूट्यप्रासाद " नाम पाडवामां आव्यु. तेमां चोर्यासी आंगुलनी पारसनी श्री महावीरप्रनुनी मूर्ति स्थापवामां आवी. तेनुं विशेष वृत्तांत रत्नमंडनसूरिए करेला सुकृतसागर नामना काव्यश्री जाणी लेवं. जर्णोधारः श्रुतपरिमलामोदितात्मन्यजत्रं पात्रे दानं नगवति जिनाधीश्वरे नित्यन्नक्तिः ॥ दीनानाथो चरणमनिशं विश्वविश्वोपकारः । प्राणित्राणं फलमिदमहो चंचलायाः श्रियोऽस्याः अर्थ- जीर्णोधार करवो, सिद्धांतोना परिमलथी सुगंधि श्रात्मावाला एवा सुपात्र प्रते हमेशां दान श्राप, जिनेश्वर प्रनुनी हमेशां लक्ति करवी, तेम हमेशां दीन अने अनाथ माणसोनो उचार करवो; समस्त जगतपर उपकार करवो, तथा प्राणीउनुं रक्षण करवू; एज आ चंचल लक्ष्मीनुं फल . हाथीना कानसरखी चंचल एवी लक्ष्मीनु तेज फल ने के, तेथी जीर्णोधारादिक पुण्यकार्य करवं. जेम बाहडदेवमंत्रिए, शत्रुजय तीर्थनो नझार, रेवताचलपर पगधी बांधवानुं कार्य, नृगुकबमा समलिका विहारनो नझार, तथा बन्ने तीर्थोनी यात्रा, एवी रीतना पोताना पिता उदायन मंत्रिना चारे मनोरथो सफल कर्या ने. ते नीचे प्रमाणे जाणवा. बाहडदेवमंत्रि एक दहाडो श्री शत्रुजयपर यात्रा माटे गया,
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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