SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ए६ उपदेशतरंगिणी. विलास अघटित . वली अहीं करेलां नानां पगथी संताननो अनाव सूचवनारां बे. बार हाथ लांबां नारोटी अनुचित बे, केम के, तेना नांगवाथी प्रासादनो विनाश थवानो संप्नव के. वली बाह्यघारमा जे कसोटीना स्तंजो कर्या ते पण अयुक्त बे, केमके, ते मूल्यवान होवाथी सर्वनी दृष्टिए पमवाथी कदाच प्रासादलंगनो लय रहे . इत्यादि घणां दूषणो निवेदन कर्या. तेनां ते वचनोने सत्य मानीने शोजनादिके यशोवीरनी स्तुति करी तथा कह्यु के, जे बनवानुं हतुं ते बनी चुक्युं . एक दहाडों मंत्रीश्वरनी स्त्री अनुपमदेवी एक जैनसाधुने आहार आपी नमस्कार करती हती, ते वखते प्रमादश्री साधुनुं घीथी नरेलुं पात्र तेणीनापर पडी गयुं, अने तेथी तेणीनुं नवरंगी चीर घीवालुं थयुं, ते जोइ घरना कोश्क मुष्ट चाकरे साधुने गाल आपी. त्यारे अनुपमदेवीए क्रोध पामीने तेने घरमांथी कहामी मेट्यो, अने कह्यु के, हुं जो कोई तेलीनी के कंदोश्नी स्त्री होते तो, दरेक पगले मारां वस्त्रो घृत अने तेलथी मलीन श्रते. आ तो माहं परम लाग्य बे के, मुनिराजना पात्रथी मारु देहसिंचन श्रयं. इत्यादि आ मंत्रीश्वर माटेनुं विशेष वृत्तांत प्रबंधामृतदीर्धीका विगेरेची जाणी लेवू तथा एम विचारि सर्व लोकोए पोतानी लक्ष्मीने धर्ममार्गे वापरीने पोतानो जन्म सफल करवो. स्वैऽव्यर्जिनमंदिराणि रचयत्यभ्यर्चयत्यर्हतखिनकत्या यतिनां तनोत्युपचयं वस्त्रान्नपात्रादिन्निः ॥ धत्ते पुस्तकलेखनोद्यममुपष्टभ्यातिसाधर्मिकान दीनाभ्युधरणं करोति कलयत्येवं सुपुण्यार्जनम् ॥१॥ अर्थ- प्राणी पोतानां व्योथी जिनमंदिरो बंधावे , जिने
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy