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________________ (५५) महापुण्ययोगे प्राप्त कर्षा पछी केटलाक मूर्खो तो प्रमादी वाणियानी पेठे एश आराम के प्रवृत्तिमां काळ गुमावी हारी जाय छे, तेओ तेनी पेठे पस्ताय छे. जेओ प्रथमथीज चेती जाय छे, तेओ विचक्षण वणिकनी पेठे अप्रमत्त पणे धर्मक्रिया करीने एकलां रत्नोज हाथ करे छे. तेनुं मन तो नथी दोडतुं विषय तरफ के नथी दोडतुं कषाय तरफ. ए तो दम बांधीने उत्तम व्यवहार उत्तम वर्तन अने दान, शीळ विगेरे धर्मअनुष्टानो करी आखो दिवस अने रात जागता रहे छे अने बीजी वस्तु पातानां गाडांमा लेताज नथी; ए तो रत्ननीज वात करे छे, बीजाने अडकता पण नथी. मनुष्यभवनुं आयुष्य बे प्रहर* जेटलुं छे. तेटलो वखत धर्म करवायी जे फळ बेसे छे ते घणा वखत सुधी सुख आपे छे, माटे अत्र इंद्रियोने अने मनने वश करी धर्म धन एकटुं करी लेवामां तैयार रहेवु. ॥ दृष्टांत दशम् - बे विद्याधरनुं ॥ वैताढ्य पर्वतपर वे विद्याधर रहेता हता. तेओए पोताना वडिलोनी बहु सेवा करीने तेमनी पासेथी जगतने वश करे तेवी विद्या मेळवी. पछी ते विद्यानी साधना करवा माटे पृथ्वीपरना कोई गाममां आव्या अने ते विद्यानी आराधनाना कल्प अनुसार चंडाळनी छोडी साथे वेविशाळनी प्रार्थना करी अने बन्ने घरजमाई तरीके तेने त्यां रह्या. तेओ बे चंडाळ पुत्री साथै परण्या अने साथै रहेवा लाग्या; परंतु जूदा जूदा भागमां रहीने तेओ विद्या साधवा लाग्या. चंडाल कन्या नीच होवाथी हावभाव करीने तेओने क्षोभ पमाडती हती; परंतु बेमाथी एक विद्याधर तो दृढ निश्चय वालो होवाथी जरा पण डग्यो नहि अने छ मास सुधी निरतिचार ब्रह्मचर्य पाळी विद्या सिद्ध करीने वैताढ्ये गयो अने सर्व लक्ष्मी अने राज्यनुं सुख अनुभव्युं. बीजो विद्याधर तो चंडाळ कन्याथी क्षोभ पामी गयो अने तेनी साथै लपटायो, ब्रह्मचर्यथी भ्रष्ट थयो. नीचनो स्पर्श थतां ज पोतानी पासे हती ते विद्या पण चाली गई अने चंडाळपणुं पामीने ते दुःखी थयो. (उपनय) आ विद्याधरने सर्व सामग्री मळी हती छतां इंद्रिय परवश थइने सर्व गुमावी बेठो, तेवी रीते आ संसारमां लालचना प्रसंगोथी बहु चेतवानी जरूर छे. लालचने लात मारतां शीखवानी खास जरूर छे. एवे प्रसंगे मनोविकारने * देवताना मोटा आयुष्यना प्रमाणमां मनुष्यनुं आयुष्य बहु अल्प छे.
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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