________________
(४४)
उपर लखेली छ बाबतो सर्व प्रकारनी आपत्तिओ उत्पन्न करे छे. केटलीक बखत अमुक पापनो उदय अमुक कार्य साथे मेळवी शकातो नथी कारणके आपणने तेवू ज्ञान नथी, पण कारण वगर कार्य थतुं नथी अने मननी अनेक व्यथा अने शरीरपर गंभीर व्याधिओ थाय छे. ते सर्व अमुक कारणने लइनेज थवी जोईए अने तेनो मुख्य भाग अत्र आपामां आव्यो छे. __ आ श्लोकने त्रीजा श्लोक साथे सरखावी तेनो भाव समजवानो छे. त्रीजा श्लोकमां संपत्तिना कारणो बताव्यांछे, आमां विपत्तिनां कारणो बताव्यांछे. संपतिनां कारणो सेववा करता विपत्तिना कारणो तजवानी अत्यंत आवश्यकता छ तेथी त्रीजा श्लोक करतां आ श्लोकमा कहेल भाव बहुज मनन करवां योग्य छे. जिनेश्वर तरफ अभक्ति अने गुरुनी अवज्ञा ए बन्ने धर्मनी पण अयोग्यता बतावे छे. व्यापारादिमां अनुचित आचरण ने अधर्मीनो संग आबे धर्मभ्रष्टपणुं सूचवे छे. अने माता पितानी ऊपेक्षा तथा परने ठगवा पणानी बुद्धी ए व्यवहार थी पण विमुखता सूचवे छे. आ छ दोषवाळाने पगले पगले विपत्ति थवीज जोईए. ते छतां कदी कोई वखत सारो जाय तो ते काइक पुर्वनोज पुण्योदय समजवो.. आवा श्लोको खाली वांची जवाथी विशेष लाभ करतां नथी माटे आ ग्रंथमा अगाऊ कहेवामां आव्युं छे तेम वारंवार तेनुं मनन करवू अने पोतानो अनुभव लागु पाडी वारंवार पुनरावर्तन कर्या करवं.
॥प्रमादथी दुःख शास्त्रगत दृष्टांतो॥
(उपजाति छंद) उरभ्रकाकिण्युदाबिंदुकाम्र,-वणित्रयीशाकटभिक्षुकाद्यैः । निदर्शनारितमर्त्यजन्मा, दुःखी प्रमादैर्बहु शोचितासि ॥५॥
अर्थः-- "प्रमादे करीने हे जीव ! तूं मनुष्यभव हारी जाय छे अने तेथी दुःखी थइने बोकडो, काकिणी, जळबिंदु, केरी, त्रण वाणीया, गाडं हांकनार, भीखारी विगेरेनां दृष्टांतोनी पेठे तुं बहु दुःख "पामीश" ॥५॥ भावार्थः- प्रमादथी आ जीव मनुष्यभव हारी जाय छे अने दुःखी