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________________ ( ३३ ) ज्ज सयं ॥ दिज्जइ लिज्जइ उचिअं इछिज्जइ जइ थिर पिम्मं ॥ २१ ॥ अर्थः- जो प्रेमने स्थिर राखवा इच्छा होय तो आपणे प्रियजनने त्यां जमवुं अने आपणे त्यां तेने जमाडवो. तेना मननो भाव पुछवो, अने आपणो विचार कहेवो. तथा उचित वस्तु देवी अने लेवी ॥ २१ ॥ भावार्थ: आ जगत शाथी दुःखी छे ? प्रेमना अभावे. मनुष्यने घणा खुशामतीआ मळे छे, पण साचो मित्र मळवो घणो मुश्केल छे, नाणां मूकवाने पेटी मळे छे, पण वात मूकवाने मित्रनुं हृदय मनुष्यो साचा- वफादार मित्रना अभावे अनेक सुखनां दुःखी जणाय छे. जगतना व्यवहारमां तेमज आध्यात्मिक मित्र मळ्यो होय छे, तेने खरेखर सुखी मनुष्य गणवो आवो मित्र जो पूर्वना पुण्योदये आपणने मळ्यो होय तो ते मित्रता जाळवी राखवी. गमे तेटलो भोग आपको पडे, पण ते मित्रता तूटे तेवुं कंई पण करवुं नहि. हवे आवी मैत्री नभाववा माटे आ श्लोकमां केटलाक नियमो आपवामां आव्या छे. ―― • मळतुं नथी. घणा साधनो होवा छतां मार्गमा जेने आवो ( १ ) आपणे तेने त्यां जमवा जवुं, अने आपणे त्यां तेने जमाडवो. सहभोजन ए पण हृदयनी लागणी प्रकट करवानुं एक उत्तम साधन छे. माटे एवा प्रसंगो शोधवा-तेनो लाभ आपको अने लेवो. ( २ ) मित्रना मनमां कांई चिंता होय तो ते पुछीने जाणवी अने ते दूर करवा बनतो प्रयत्न करवो. तेना शुभ कार्यमां तेने प्रोत्साहन आपवुं. मनुष्य मित्रनी हुंफी घणुं बळ मळे छे; अने हृदयनेो भार ओछो थाय छे. वळी पोते पण पोताना जे कांई प्रश्नो होय ते मित्रने जणावे, अने तेनी सलाह पुछे. विना संकोचे ते पोताना हृदयगत भाव मित्रने जणावे. (३) उचित वस्तु लेवी अने देवी. एक बीजाने वस्तुओ आपवी लेवी. स्वार्थनो विचार कर्या विना मित्रनुं कल्याण करवुं. अमुके मने आटली मदद करी, माटे मारे आटली करवी, एवी गणत्री ए मित्रता नहि पण वेपारी सोदो जाणवो. ३
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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