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________________ ( २१ ) जगत भणी दृष्टि करतां जणाय छे के जे जें मोटां कार्यों आ विश्वमां थया छे, ना करनारा पुरुषो शूरवीर अने साहसिक हता, साहसनो गुण आत्मशक्तिमा विश्वास राखनार पुरुषोमां आवेछे. अने जे मनुष्योने पोतानी शक्तिमां विश्वास नथी, तेओ पोतानुं कार्य पण करी शकता नथी, तो पछी बीजानुं कार्य करवानी आशा तेवा पुरुषो पासेथी राखवी, ए हवामां किल्ला बांधवा समान छे. आ उपरथी आ लेखकनुं एम कहेवुं नथी के पोतानी शक्तिनो विचार कर्या शिवाय गमे तेवा भारी कार्यमा ' या होम करी' झपलाव, पण एटलं तो निश्चित छे के ज्यां सुधी धैर्य राखी एकाद पगलुं पण आगळ न भरीए त्यां सुधी आपणी स्थितिनुं अने शक्तिनुं खरं भान आपणने आवी शके नहीं आपणा पूर्व जे महान पुरुषो थई गया तेणे असह्य संकटो वेठी पोतानी उन्नति साधी छे, ते वात आपणने प्रोत्साहन आपे छे, अने आपणने धैर्यथी आगळ वधवाने प्रेरे छे उपर जणाव्या प्रमाणे वर्तवाथी मनुष्य जगतमां पोतानो हाथ उचो राखी के छे, ए निःसंदेह छे. -- वसणे विन मुज्झिज्जइ, मुच्चइ णायो न नाम मरणेपि । विहवख्खएव दिज्जइ, वयमसिधारं खुधीराणं १३ अर्थः-दुःख आवे मुझावु नहि, मरण आवे तोपण सन्मार्गनो त्याग न करवो; धननो क्षय थयो होय तोपण यथोचित दान देवु; धीर पुरुषोनुं आ तरवारनी धारपार चालवा जेवुं विषम व्रत छे. ॥१३॥ भावार्थः – दुःख आवे मुंझावुं नहि -जगतमां सुख दुःख चाल्यां करे छे. कालिदास कविना मत प्रमाणे कोईने एकान्त सुख अथवा दुःख मळेज नहि, कारणके जगतनुं मायावी सुख ते अंते दुःखमय छे. कह्युं छे केः -- जे सुखमां फिर दुःख वसे, सो सुख नहि दुःख रुप; । जे उत्तंग फिर गीर पडे, सो उत्तंग नहि भव कूप. ॥ मनुष्यनी स्थिति बदलायां करे छे, पण जेम सूर्य उदयकाळे तेमज अस्तकाळे सरखो रातो रहे छे, तेम जे मनुष्य चडती तेमज पडतीमां एक सरखी धीरज जाळवी शके छे, तेज सजनना। पदने लायक छे. मनुष्यनी दशा
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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