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________________ (१५) काढी नांखवानो सौथी सारो उपाय तेना गुण भणी दृष्टि राखवानो छे. जैम भक्त पुरुषो भक्तिना प्रभावथी भक्तिना पात्रमां कोई अवगुण होव तो पण ते गणता नथी, तेज रीते आपणे पण अवगुण तरफ दृष्टि न राखतां गुणग्राही थवुं. कोईना पण अवर्णवाद बोलवानुं मन थाय के तरत मनने शुद्ध करवुं. कह्युं छे के : Mind requires purification, whenever anger is felt, or falsehood is told or the faults of any one needlessly exposed or when anything is done or said for the purpose of flattery or when any one is deceived by the insincerity of speech or an act.. अर्थः- ज्यारे क्रोध थाय, जुहुं बोलवामां आवे, बीजाना दोष निरर्थक खुल्ला करवामां आवे, खुशामतने सारु कांई पण बोलवामां आवे अथवा करवामां आवे अथवा अप्रमाणिक वचन अथवा कार्यथी कोईने छेतरवामां आवे त्यारे मननी शुद्धिनी जरुरछे. कारण के उपर जणावेला प्रसंगोए मन अपवित्र बने छे, पोतानुं कर्तव्य भुली जाय छे, अने अशुभ अध्यवसायवालुं थाय छे. माटे निदानो सर्वथा प्रकारे त्याग करथो एज उत्तम जनोनुं लक्षण हे. बहु स नहि. जे मनुष्यो गंभीर छे ते सहेज वातमा हसता नथी. तेओने दरेक नजीवो बनाव असर करी शकतो नथी, माटे तेओ मननी समाधानता जाळवी शके छे. जे बहु हसे छे तेज बहु रडे छे. बीजा शब्दोमां कहीये तो जे सहेजमां हर्षवंत थाय छे ते सहेजमां रडी पण पडे छे. खरा महान् पुरुषो सहज बाबत थी पोताने असर थवा देतां नथी. तेवा पुरुषो उपर जणाव्या प्रमाणे महत्वताने पामे छे. तेओ जगतमां पूज्य थाय छे. रिउणो न वीससिज्जइ, कया वि वंचिज्जए न वीसत्थो न कयग्धेहिं हविज्जइ, एसो नायस्स नीस्संदो ॥ १० ॥ अर्थः-- शत्रुनो विश्वास न करवो; कदापि विश्वासुने छेतरवो नहीं; कदापि कृतघ्न न थवुः आ न्यायनो मार्ग छे. ॥ १० ॥ भावार्थ:- शत्रुनो विश्वास न करवो: -आ सूत्र घणुं सामान्य लागे छे.
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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