SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥श्री वर्द्धमान-सत्य-नीति-हर्षसूरि जैन ग्रन्थमाला पुष्प ४॥ ॥ नमुत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स ॥ आचार्य श्री पद्मजिनश्वरसूरिविरीचता उपदेशरत्नमाला. (गूर्जर भाषानुवाद) उवएसरयणकोसं, नासिअनीसेसलोगदोगचं ॥ उवएसरयणमालं, वुच्छं नामऊण वीरजिणं ॥१॥ अर्थः- समस्त लोकना दारिद्रनो नाश करनार अने उपदेशरूप रत्नना भाण्डार स्वरुप एवा श्री वीर भगवानने नमस्कार करीने उपदेशरत्नमाला नामनो ग्रन्थ कहीश ॥१॥ भावार्थ:- ग्रन्यकर्ता विघ्न विनाशना हेतुथी वीर भगवानने नमस्कार करी मंगलाचरण करे छे. ग्रन्थनो हेतु जगत् मात्रना जीवोनुं दुःख दूर करवानो छे, अने ग्रन्थनो विषय जगतना जीवोने उपर जणावेलो हेतु पार पाडवाने उपदेश आपवानो छे. माळा जेम कंठमां धारण करवामां आवे तेम आ उपदेशरुप रत्ननी माळा हृदयमां धारण करी मनुष्य वर्ते तो आत्महित साधी शके, एम ग्रन्थकार जणावे छे. ग्रन्थकर्ता ढूंकाणमां धर्मर्नु रहस्य समजावे छे. धर्मर्नु रहस्य जीवदयाइं रमिज्जइ, इंदियवग्गो दमिज्जइ सया वि॥ सञ्चं चेव चविज्जइ, धम्मस्स रहस्समिणमेव ॥२॥
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy