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________________ श्री वैराग्य शतक (२०) जेणे बीजाना दुःखनी दरकार नथी करी एवा जीवोना नरकना दुःखो - उछाळे आकाशे नीचे नाखी छेदे नाक ने कान, शेके उनी रेतीमां ज्हेने नहीं परना दुःखनुं ज्ञान. आंतरडां खेंचीने रौरव दुःख दीये ते नैव कहाय. ए दुःख नरकतणां हे चेतन ! कहेने तुजथी केम खमाय. ... विवेचन-अहीं बीजाने दुःख दईने सुखी थता-आनंद पामता जीवोने परमाधामीओ पण एवाज दुःख दे छे. ते देवोने बीजाने केQ दुःख थाय छे, तेनुं ज्ञान-समज नथी. तेओ नारकीना जीवने आकाशमां ऊछाळे, नीचे पडताने भालापर झीले ने भालाथी तेना नाक-कान वगेरे अवयवो छेदे. अतिशय गरम रेतीमां धाणीनी माफक शेके-/जे. पेटमां वांकां शस्त्रो भरावीने आंतरडां बहार खेंची काढे. एवा एवा भयंकर दुःखो दे के जेनो कहेता पार न आवे कहेता काळजु कम्पे, कह्या न जाय, एवा दुःखथी बचवा, हे चेतन ! बीजाना सुखे-सुखी ने दुःखे-दुःखी थतां शीख, मैत्रीभाव केळव, धर्माभिमुख बन. (२०) (२१) नारकीना जीवोनी भुख-तरसनुं वर्णन. सर्वक्षेत्रना सर्वधान्यथी नरकजीव नव एक धराय, सर्व समुद्रनुं जळ पीवे पण तृषा तेहनी शान्त न थाय.
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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