________________
१२०
.
त्पय छ.
श्री वैराग्य शतक भावना अहिं सुंदर रीते भाववामां आवी छे के ए सुकतो मोढे करी. वारंवार बोल्या करवानुं मन थाय ज्यारे ज्यारे ए श्लोको बोलीए छीए, त्यारे तेनुं चित्र सामे खडं थाय छे. दरेक भव्ये आ भावनाना श्लोको कंठे करीने सवार-सांज बोलवा विचारवा ने ए दशा प्राप्त करवा प्रयत्न करवो एज आनु रहस्य छे-तात्पर्य छे.
(शार्दूल विक्रीडित) साक्षात् श्री जिनदेवने निरखशं, कयारे अहो ! नेत्रथी ने वाणी मनोहारि चित्त धरशुं क्यारे कहो प्रेमथी श्रद्धा निश्चल धारशुं जिनमते, श्रेणीकवत् के समे, ने देवेन्द्र वखाणपात्र थईशुं, क्यारे सुपुण्ये अमे ? १ क्यारे देव चलायमान करवा, मिथ्यामति आवशे, ने सम्यक्त्व सुरत्ननी अम विषे, साची परीक्षा थशे, कयारे पौषधने ग्रही प्रणयथी, सद्भावना भावशुं, ने रोमांचित थई तपस्वीमुनिने, क्यारे पडी लाभशं? २ सवैराग्यरसे रसिक थईने, दीक्षेच्छु क्यारे थशें, ने दीक्षा ग्रहवा मुनीश्वर कने, क्यारे सुभाग्ये जशुं सेवा श्रीगुरुदेवनी करी कदा, सिद्धान्तने शिखशुं ने व्याख्यानवडे समस्तजनने, कयारे प्रतिबोधशुं ३ गामे के विजने सुरेन्द्रभवने, ने झुपडे क्ये समे, स्त्रीमां ने शबमां समानमतिने क्यारे धरीशुं अमे,