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श्री वैराग्य शतक करी शकतुं नथी, ए दुःखथी बचावनार कोई होय तो ते धर्म छे. धर्मने आराध्यो होय तो आवां दुःखो आवतां नथी ने आवे छे तो सहनशीलता रहे छे, ने अंते परम सुख मळे छे. माटे धर्म करने सुखी था. आ वात 'अनाथी' मुनिना द्दष्टांतथी आबेहुब-यथार्थ समजाय छे, ते माटे श्री. उत्तराध्ययन सूत्रनुं वीसमुं -महानिर्गठिज्ज' अध्ययन वांचq. सांभळवु ने विचारीने हृदयमां उतार, (७१) (७२) स्त्रीस्नेह अने पुत्रप्रेम-दुःखदायी छे. एने
सुखदायी मानी दुःखी न थाव. आ पुत्र मुज सुख हेतु छे आ स्त्री सदा सुखदायिनी मत जाणजे एम मन विषे ए बुद्धि छे दुःखदायिनी एम मानता कै नारकी ने कैंक तिर्यंचो थयां. नरजन्महीरो हाथथी हारी गयां हारी गयां.
विवेचन-हे चेतन ! तने कोईए भुलाव्यो छे, ऊंघे रस्ते चडाव्यो छे, भ्रममां नाख्यो छे. तुं सुखनी शोधमां फरे छे तने मोहराजाना दलालोए स्त्रीथी सुख मळशे-पुत्रथी सुख मळशे धन-भोग विलासो, एशआरामथी सुख मळशे. वगेरे समजावी तेनी पाछळ तने पागल करी दीधो छे, तुं ए बधुं साचुं मानी एनी पाछळ गांडानी माफक भमे छे. पण एमां सुख नथी. ए तल नथी. रेतीना कण छे, एमांथी तेल नहि नीकळे गमे तेटलुं पीलीश, पण कांई नहि वळे. तारी जेवा