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________________ अशठ गुण वर्णन यह सुन कर पानी से भरे हुए मेघ के समान सहदेव ने काला मुह किया, जिससे विमल ने उसे अयोग्य जानकर मौन धारण कर लिया। पश्चात् सहदेव की जिनधर्म पर से प्रीति कम होती गई और पाप मति स्फुरित होने से वह विरतिहीन होकर नाना प्रकार के अनर्थ-दंड करके सम्यक्त्व भ्रष्ट हो गया । पश्चात् किसी प्रथम के विरोधी पुरुषने किसी समय कपट कर सहदेव को छुरी से मार डाला, और वह प्रथम नारकी में गया। तदनंतर महान् गंभीर संसार समुद्र में भटकते हुए असहा दुःख भोग कर जैसे तैसे मनुष्य भव प्राप्त कर कर्म क्षय करके वह मुक्ति प्राप्त करेगा। ___ इधर अत्यंत पाप-भीरु विमल गृहिधर्म का पालन कर प्रवर देवता हो महाविदेह में जन्म लेकर सिद्धि पावेगा। इस प्रकार कर्म को अणियों से अस्पृष्ट विमल का यह चरित्र जानकर, हे जनों! तुम सम्यक्त्व और चरित्र में धीर होकर पापभोरु बनो । इस प्रकार विमल का दृष्टांत समाप्त हुआ। -+xt भीरता रूप षष्ठ गुण कहा, अब अशठता रूप सप्तम गुण को स्पष्ट करते हैं: असढो परं न वंचइ, वीससणिजो पसंसणिजो य । . उन्जमइ भावसारं, उचिओ धम्मस्स तेणेसो ॥ १४ ।। - मूल का अर्थ-अशठ पुरुष दूसरे को ठगता नहीं, उससे वह विश्वास करने योग्य तथा प्रशंसा करने योग्य होता है, और भाव पूर्वक उद्यम करता है, अतः वह धर्म के योग्य माना जाता है।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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